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Sunday, December 26, 2010

लालगंगा की राह में रोड डिवाईडर रोड़ा


राजधानी में मॉल कल्चर की शुरुआत करने वाला लालगंगा शॉपिंग मॉल इन दिनों ग्राहकों की बांट जोहता नजर आ रहा है। हालांकि ग्राउंड फ्लोर और बेसमेंट में ग्राहक पर्याप्त संख्या में पहुंचते हैं, लेकिन बाकी तलों में स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। वर्ष 2003 में जब यह बनकर तैयार हुआ, तब यह शहर का इकलौता मॉल था और यहां आने वाले ग्राहकों की संख्या में बीतते वक्त के साथ बढ़ोतरी हुई, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें कमी आई है। लालगंगा के ठीक सामने जीई रोड पर डिवाइडर होने के कारण वाहनों को घड़ी चौक या राज टाकीज से घुमाकर लाना पड़ता है, जिस कारण जो लोग यहां आना चाहते हैं वो भी असुविधाजनक होने के कारण आने से बचते हैं। दूसरा, यहां आने वालों के लिए वाहन पार्किंग हमेशा से ही समस्या रही है। जरूरत के हिसाब से पार्किंग न होने के कारण भी समस्या बढ़ती जा रही है। हालांकि बेसमेंट पार्किंग और मॉल के बाहर भी पार्किंग सीमा दी गई ह,ै लेकिन वह अपर्याप्त है। इस संबंध में लालगंगा बिल्डर्स के ललित पटवा बताते हैं कि हमें व्यावहारिक नजरिए से सोचने की जरूरत है। पार्किंग के बारे में उनका मानना है कि इसके लिए जितना कुछ कर सकते हैं, वो किया जाता है। रोड डिवाइडर पर भी उनका यही मानना है कि यातायात व्यवस्था के सुगम परिचालन हेतु कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पडता है।
शॉपिंग मॉल के तौर पर अपनी शुरुआत करने वाला लालगंगा मॉल आज शॉपिंग सेन्टर की राह पर निकल गया है। आज शहर में कई नए मॉल खुल गए हैं जो कि अधिक सर्वसुविधायुक्त हैं। इसके बावजूद लालगंगा का महत्व कम नहीं हुआ है। यहां इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे कम्प्यूटर, मोबाइल आदि का बाजार तेजी से विकसित हो रहा है, साथ ही दो सौ से अधिक दुकानें व कार्यालय भी यहां हैं जिनमें कई बैंक व ऑफिस शामिल है। मोबाइल विक्रेता हर्ष बताते हैं कि वह यहां पिछले छह वर्षों से दुकान चला रहे हैं और उनके ग्राहक बंध गए हैं।
वह कहते हैं कि अन्य काम्पलेक्स की तुलना में यहां की स्थिति कहीं बेहतर है, साफ-सफाई की भी स्थिति सुधरी है। सुरक्षा हेतु गार्डों की भी व्यवस्था है। प्रापर्टी डीलिंग से जुड़े एक व्यवसायी ने बताया कि कुछ समस्याओं के लिए जागरूकता की कमी व कुछ के लिए सीमित स्थान समस्या है। हालांकि उनका मानना है कि स्थिति पहले से काफी बेहतर है।

कचरे से फैलती है दुर्गंध
लालगंगा मॉल के बगल से मंत्रालय जाने वाली सड़क में कचरा फेंकने से वहां गंदगी फैलती है, जिससे मॉल की सुन्दरता पर तो बट्टा लगता ही है, आसपास के दुकानदारों को भी असुविधा होती है। इस संबंध में लालगंगा प्रबंधन का कहना है कि सड़क किनारे ठेला लगाने वाले कचरा वहां फेंक देते हैं, निगम द्वारा वहां कई बार सफाई कराने के बावजूद स्थिति दोबारा वैसी हो जाती है। ललित पटवा कहते हैं कि कई बार ठेलों व गंदगी फैलाने वालों को मना किया गया, लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं होता। मॉल के उस लाइन में पड़ने वाले दुकानदारों और कचरा फैलाने वालों के बीच कई बार विवाद की स्थिति भी बन जाती है।

Friday, December 17, 2010

भामाशाह को नहीं मिलता पुरस्कार

चालीस साल रिक्शा चला बनवाई धर्मशाला

आज शहरों में जब धर्मशालाओं को तोड़कर आर्थिक लाभ की दृष्टि से सर्वसुविधायुक्त काम्प्लेक्स तैयार किए जा रहे हों और सेवा-परोपकार का लाभ कमाने की होड़ में कोई स्थान नहीं रह गया है। ऐसे दौर में अपनी जीवन भर की पूंजी इकट्ठा कर धर्मशाला बनवाने वाले संत सदाराम बांधे जैसे लोग बहुत ही मुश्किल से मिलते हैं। इस 75 वर्षीय वृध्द ने उम्र भर रिक्शा चला एक-एक पैसा जोड़कर जो काम कर दिखाया, उसे करने में आज बड़े-बड़े धन्नासेठ बचते हैं। लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि ऐसी शख्सियत को आज अपनी वृध्दावस्था पेंशन और गरीबी रेखा राशन कार्ड बनवाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। ऐसे दानवीर शासन के भामाशाह सम्मान के भी पात्र नहीं समझे जाते।
संत सदाराम बांधे ने सड़कों पर चालीस साल रिक्शा चलाकर तीन लाख रुपए जोड़े और दो लाख में अपना मकान बेचकर पांच लाख रुपए की लागत से गिरौदपुरी में तीर्थयात्रियों व दर्शनार्थियों की नि:शुल्क सेवा के लिए दस कमरों की धर्मशाला का पिछले वर्ष निर्माण करवाया।
सतनामी समाज की गुरूमाता से प्रभावित होकर सदाराम ने अपनी पत्नी की याद में असहाय लोगों के लिए सिर छिपाने की जगह तैयार की और इसे सतनाम धर्मशाला नाम देकर गुरूमाता को समर्पित किया। पांच साल पहले अपनी पत्नी के निधन के बाद जीवन गुजारने के लिए उसके पास आय का कोई साधन नहीं है। सदाराम का नाम उनके दीर्घावधि सेवा, कार्यों और अभूतपूर्व योगदान के लिए गुरूघासीदास पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया जा चुका है। यह पुरस्कार उन्हें नहीं मिला। वैसे तो वे दानवीर भामाशाह के नाम पर दिए जाने वाले राजकीय सम्मान के स्वाभाविक हकदार हैं, लेकिन यह पुरस्कार भी उन्हें नसीब नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि हर वर्ष अमीरों को मिलने वाला यह पुरस्कार के लिए आज के ऐसे भामाशाह योग्य नहीं हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में सदाराम जैसी कई हस्तियां हैं जिन्होंने जीवन में संघर्ष कर जो कुछ भी कमाया उसे सामाजिक काम के लिए दान में दे दिया रायपुर के नगरमाता बिन्नीबाई सोनकर उनमें से एक हैं।

Thursday, December 16, 2010

समस्याओं से घिरा जयराम काम्पलेक्स


  • देखरेख करने वाला कोई नहीं
  • पार्किंग, सुरक्षा से जुडी कई दिक्कतें
रायपुर के मुख्य केन्द्र जयस्तंभ चौक पर स्थित शहर का पहला शॉपिंग सेंटर जयराम काम्पलेक्स चौतरफा समस्याओं से घिरा हुआ है। समस्याएं भी ऐसी हैं कि उनका निकट भविष्य में समाधान होने की संभावना न के बराबर है। इलेक्ट्रॉनिक बाजार के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले इस काम्प्लेक्स में न तो पार्किंग की कोई मुकम्मल व्यवस्था है न ही सुरक्षा के कोई इंतजाम, पूर्व में यहां चोरी की कई बड़ी घटनाएं घट चुकी हैं। दो सौ से अधिक दुकानों वाले इस काम्पलेक्स में पार्किंग की व्यवस्था न के बराबर है, क्योंकि दोनों तरफ मुख्य सड़क होने के कारण कुछ गाड़ियां ही एक लाइन पर खड़ी हो पाती हैं, जबकि दूसरी तरफ जीई रोड की ओर इतनी की भी गुंजाइश नहीं है। हालांकि बेसमेंट पार्किंग बनी है लेकिन वह सिर्फ शो-पीस साबित हो रही है, क्योंकि यहां भी दुकानें निकाल दिए जाने के कारण सीमित स्थान ही रह गया है। टूटी नालियों व अव्यवस्थित ड्रेनेज का पानी बेसमेंट में भर जाने के कारण इस पार्किंग का प्रयोग न के बराबर होता है। केवल व्यापारी धीरज जादवानी की इस काम्पलेक्स में सन् 1994 से ही दुकान है, उन्होंने बताया कि यहां देखरेख करने वाला कोई नहीं है इसलिए स्वयं ही सब इंतजाम करना पड़ता है।
सुरक्षा से जुड़े कई पेंच भी इस काम्पलेक्स में उलझे हुए हैं, हालांकि कुछ दुकानदारों ने निजी गार्ड को लगा रखा है, लेकिन जटिल स्थिति तब बनती है जब काम्पलेक्स का एक हिस्सा रात के समय ऐसे ही पड़ा रहता है। पूर्व में कई बार यहां के व्यापारियों ने आपसी सहमति से पूरे काम्पलेक्स की सुरक्षा के लिए कवायद की थी, लेकिन आपसी मतभेदों के चलते यह प्रयोग ज्यादा दिन नहीं चल पाया। दिनोंदिन बदहाल होती काम्पलेक्स की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कॉपियर्स विक्रेता राकेश सुंदरानी कहते हैं कि यहां की ज्यादातर समस्याओं के लिए इसके मालिक, निगम के लालची अधिकारी और बेतरतीब बढ़ता यातायात जिम्मेदार है, जिसने बीतते समय के साथ विभिन्न समस्याएं पैदा कीं, जिसका खामियाजा यहां आने वाले ग्राहकों और दुकानदारों को भुगतना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि अगर समय रहते यहां की समस्याओं को सुलझाने के लिए पहल नहीं की गई तो यहां की व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती है क्योंकि काम्पलेक्स शहर के बीचोबीच स्थित है और ट्रैफिक का दबाव तेजी से बढ़ रहा है।

Monday, December 13, 2010

ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण हेतु छत्तीसगढ़ में कानून नहीं


  • न्यायालय भवन तोड़ने का विरोध तेज़
  • राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनाने की मांग

राज्य की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए प्रदेश में कोई कानून न होने का खामियाजा ऐतिहासिक इमारतों को ज़मींदोज़ होकर भुगतान पड़ रहा है। ब्रिटिश शासनकाल के समय सन् 1880 में निर्मित पुराना न्यायालय भवन की मूल संरचना के साथ छेड़छाड़ कर नए निर्माण के प्रयास होने लगे हैं, जिसका भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) व इतिहासकारों ने विरोध किया है। इस संबंध में राज्य सरकार से मांग की गई है कि वह पुरातात्विक महत्व की इमारतों के संरक्षण के लिए उक्त भवन को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनवाए।
शहर के इतिहासविदों ने कई बार इन्टैक के माध्यम से पुरानी इमारतों के संरक्षण के लिए राज्य में कानून बनाने की मांग मुख्यमंत्री व लोक निर्माण मंत्री से की है। इतिहासकार एलएस निगम न्यायालय भवन को तोड़े जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इतिहास के उदाहरणों को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे शहर की सांस्कृतिक विरासत का पता चलता है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक महत्व के निर्माण की मूल संरचना में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। प्रदेश में जब तक इस संबंध में कानून का स्पष्ट प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक इसे केन्द्र सरकार के अधीन पुरातत्व विभाग को सौंपने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। नागरिक संघर्ष समिति के अध्यक्ष विश्वजीत मित्रा का कहना है कि वर्तमान में न्यायालय परिसर में पार्किंग की व्यवस्था व्यापक रूप से नहीं है एवं इसके बाहर ट्रैफिक का दबाव भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, जिससे आने वाले वर्षों में गोल बाजार, मालवीय रोड जैसे भीड़भाड़ की स्थिति निर्मित होगी, इसलिए उक्त परिसर में नया निर्माण करना सरकारी धन की बर्बादी तो है ही, प्राचीन धरोहर के साथ भी छेड़छाड़ है। अत: नए स्थल का चयन कर सम्पूर्ण न्यायालय भवन को अन्यत्र स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
श्री मित्रा ने यह भी बताया कि जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के अंतर्गत भी पुरानी इमारतों की देखरेख, संरक्षण, रंग-रोगन, मरम्मत आदि की व्यवस्था है, लेकिन राज्य में स्पष्ट कानून न होने के कारण एक के बाद एक ऐतिहासिक महत्व की इमारतें नष्ट होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले ही तेलीबांधा स्थित मौली माता मंदिर को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर ज़मींदोज़ कर दिया गया था।

Sunday, December 12, 2010

मोबाइल टॉवर सीलिंग से उपभोक्ता हलाकान


बोलने से बच रहीं मोबाइल कंपनियां
पहले भी चली थी सीलिंग कार्रवाई
मोबाइल कंपनियों और नगर निगम के बीच जारी रस्साकशी का खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतान पड़ रहा है। तीन दिन से अवैध मोबाइल टॉवरों के खिलाफ जारी कार्रवाई से कार्य कर रहे टॉवरों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि एक टॉवर से पांच हजार मोबाइल कनेक्शन जुड़े होते हैं, चिन्हित किए गए अवैध टावरों की संख्या 150 से अधिक होने के कारण स्थिति गंभीर बनी हुई है। इससे पहले फरवरी में भी निगम ने मोबाइल कंपनियों के अवैध टॉवरों के खिलाफ अभियान चलाया था। निर्धारित मानकों को अनदेखा कर कंपनियां कहीं भी अपने टॉवर लगा देती हैं, साथ ही सुरक्षा निर्देशों का भी ठीक से पालन नहीं किया जाता।
इस होड़ में प्रायवेट मोबाइल कंपनियां ही नहीं, बल्कि सरकारी कंपनी बीएसएनल ने भी आवश्यक दिशा-निर्देशों की धाियां उड़ायी है। आम उपभोक्ताओं को होने वाली परेशानी का हवाला देकर जब एक निजी मोबाइल कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने सीधी जानकारी देने से बचते हुए इस संबंध में अपने क्षेत्रीय कार्यालय से जानकारी मंगाने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। वहीं जानकारों का मानना है कि इस कार्रवाई से टेलीकॉम कंपनियों में हड़कम्प मचा हुआ है। स्थिति सामान्य होने में अभी कितना वक्त लगेगा, मोबाइल उपभोक्ताओं की दिक्कतें फिलहाल बढ़ गई हैं। संतोषी नगर निवासी संतोष गुप्ता ने बताया कि उनके इलाके में सिग्नल कभी-कभी बिल्कुल ही गायब हो जाता है, जिससे उनको बात करने में काफी दिक्कत हो रही है। ऐसी ही स्थिति बहुत से अन्य मोबाइल उपभोक्ताओं की भी है।



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Saturday, December 11, 2010

भारत को मिलेगा सबसे घातक बम


जल्दी ही भारतीय वायुसेना को दुनिया के सबसे घातक बमों में से एक क्लस्टर बम हासिल हो जाएंगे। अमरीकी प्रशासन के मुताबिक, उसने भारत को 512 सीबीयू-195 बमों की बिक्री के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है।

अमरीका की टैक्सट्रॉन सिस्टम्स कॉर्पोरेशन के साथ भारत का करीब 26 करोड़ डॉलर का रक्षा सौदा हुआ है। यह सौदा अमरीका के फॉरेन मिलिट्री सेल्स (एफएमएस) प्रोग्राम के तहत हुआ।

वर्ष 2003 में इराक युद्ध के दौरान क्लस्टर बमों की क्षमता का परीक्षण हो चुका है।

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय वायुसेना इन बमों का इस्तेमाल सुखोई एसयू-30 एमकेआई में कर सकती है। इन बमों की बिक्री के लिए भारत ने पहली बार 2008 में आग्रह किया था। भारत को इन बमों की बिक्री का समर्थन पेंटागन (अमरीकी रक्षा मुख्यालय) ने भी किया था। उसकी ओर से अमरीकी कांग्रेस को बताया गया था कि इन बमों से भारत की रक्षा क्षमता में वृद्धि होगी। युद्ध के दौरान जमीन पर बख्तरबंद वाहनों, टैकों आदि को भारत प्रभावी तरीके नष्ट कर सकता है।


आधे टन वजनी क्लस्टर बम
एक क्लस्टर बम का आधा टन तक होता है। इसका संचालन पूरी तरह कंप्यूटर से नियंत्रित होता है। इन बमों में सक्रिय लेजर सेंसर होते हैं। एक क्लस्टर बम से जमीन पर फिक्स या मूविंग कई लक्ष्यों को एक साथ भेदा जा सकता है। इन बमों के लिए जो वारहैड्स अमरीका भारत को दे रहा है, वे एक बार में 10 बम दाग सकते हैं। इनके वारहैड्स पर राडार लगे होते हैं जो सटीक लक्ष्य भेदने में मददगार होते हैं।

रक्षा परिवहन विमान 16 को मिलेगा
भारत को पहला स्टेट ऑफ द आर्ट सी-130 जे रक्षा परिवहन विमान 16 दिसंबर को मिल जाएगा। इस विमान की निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन की ओर से वाशिंगटन में जारी बयान में यह जानकारी दी गई। बयान के मुताबिक, पहले दो विमान 2011 की शुरुआत में, अगले दो गर्मियों की शुरुआत में और शेष दो विमान गर्मियों के अंत तक अगले साल भेज दिए जाएंगे।


Thursday, December 9, 2010

ई-बैंकिंग : लापरवाही पड़ रही भारी



रायपुर में ई बैंकिंग के जरिये डेढ़ लाख रुपये की ठगी के अहम् खुलासे के बाद बैंक ग्राहकों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गयी हैं. बैंकिंग सुविधाओं में सबसे अधिक प्रचलन डेबिट कार्ड का है, ज़रा सी भी लापरवाही से इसमें जोखिम की संभावना सबसे अधिक रहती है, इसे संभाल कर रखने की जिम्मेदारी उपयोगकर्ताओं की है. राजधानी के 120 से अधिक एटीएम में भी आप उच्च सुरक्षा नियमों का पालन करके अपनी मेहनत की कमाई को डूबने से बचा सकते हैं .

ई-बैंकिंग के जरिए धोखाधड़ी के अहम् खुलासे के बाद उन बैंक ग्राहकों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं, जो ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं। बैंकिंग सुविधाओं में सबसे ज्यादा प्रचलन एटीएम कार्ड का है, इसलिए जरा सी लापरवाही में इसमें जोखिम की सम्भावना अधिक रहती है। जहां एक ओर यह एक सुविधा है, वहीं दूसरी तरफ इसे सम्भालकर प्रयोग करने की जिम्मेदारी ग्राहकों पर है।
इन दिनों एटीएम कार्ड से जुड़ी कई प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिसमें जालसाज ग्राहकों की कम जानकारी का फायदा उठाकर उनके खातों में जमा रकम डकार रहे हैं। राजधानी में विभिन्न बैंकों के 120 से अधिक एटीएम मशीन है, जिनमें न्यूनतम सुरक्षा जैसे गुप्त कैमरा, गार्ड आदि की सुविधा होने के बावजूद लोग अपने खातों की सुरक्षा हेतु आश्वस्त नहीं हैं, क्योंकि एटीएम मशीन के साथ यह डेबिट कार्ड के तौर पर भी इस्तेमाल हो रहे हैं जिसमें बिना नकदी आहरण किए खरीददारी की जा सकती है। मशीन की गड़बड़ी या अपनी स्वयं की लापरवाही की वजह से भी उपयोगकर्ताओं को परेशान होना पड़ता है।
भारतीय स्टेट बैंक के एक अधिकारी के मुताबिक एटीएम का प्रयोग करते समय अगर कुछ सावधानियां बरती जाएं तो इसके गलत इस्तेमाल से बचा जा सकता है, क्योंकि रकम डूबने के बाद शिकायत करने पर भी बैंक किसी प्रकार की ठोस मदद करने की स्थिति में नहीं होते। एटीएम प्रयोग करते समय यह जांच लें कि कोई आपका पिन नम्बर न देख रहा हो, कार्ड विवरण जैसे कार्ड नम्बर और सीवीवी नम्बर किसी अन्य को न बताएं। कुछ मशीनों में कार्ड डालने की जगह उसको स्वाइप कराना होता है, ऐसी मशीनें अक्सर ट्रान्जैक्शन पूरा करने के बाद अगले लेन-देन के बारे में पूछती हैं जिसे 'नहीं' दबाकर पूरा करें। अगर आप अपने एटीएम कम-डेबिट कार्ड से खरीददारी कर रहे हैं तो यह ध्यान रखें कि आपके कार्ड को एक बार से अधिक स्वाइप न किया जाए। अगर ऐसा होता है तो इसकी जानकारी लेते हुए रसीद जरूर प्राप्त करें। कार्ड को अपनी नजर में ही रखें क्योंकि हो सकता है आपके द्वारा दी गई जानकारी का कोई दूसरा इस्तेमाल कर ले। कार्ड के पीछे सीवीवी नम्बर होता, इसको अपने पास सुरक्षित लिखकर इसे कार्ड से मिटा दें। तीन अंकों का सीवीवी बहुत अहम् होता है, इसकी मदद से आपकी जानकारी और कार्ड के बगैर भी कोई इंटरनेट से खरीददारी कर सकता है। शहर में अब तक घटी घटनाओं में से अधिकतर को इंटरनेट के माध्यम से ही अंजाम दिया गया है। जहां तक सम्भव हो साईबर कैफे का इस्तेमाल ऑनलाइन पेमेन्ट हेतु न करें, क्योंकि वहां से आपके निजी विवरण लीक होने का खतरा सबसे अधिक होता है। कार्ड खो जाने पर संबंधित बैंक शाखा या ग्राहक सेवा केन्द्र जाकर अपना कार्ड तुरन्त बंद करा दें, इसकी सूचना पुलिस को भी दी जा सकती है।

Wednesday, December 8, 2010

हवाई किराए में बढ़ोत्तरी, मनेगा नए साल का जश्न


नए वर्ष के आगमन में कुछ ही दिनों का समय शेष रह गया है, इसलिए 31 दिसम्बर की रात का जश्न मनाने के लिए अभी से लोग सैर-सपाटे की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। राजधानी से ज्यादातर लोग मुम्बई, केरल, गोवा व कर्नाटक जाने के लिए बुकिंग करवा चुके हैं। लोगों का उत्साह भांप हवाई किराया में तीस से चालीस फीसदी की वृध्दि हो गई है, साथ ही ज्यादातर ट्रेनों में सीटें भर गई हैं। ट्रैवल एजेंसियाँ ग्राहकों के हिसाब से कई टूरिज्म पैकेज लाकर उन्हें आकर्षित कर रही हैं।

राजधानी रायपुर के बाशिंदे नए साल का जश् मनाने के लिए घरेलू पर्यटक केंद्रों में जाकर नववर्ष का स्वागत करने की तैयारी कर चुके हैं। समता कॉलोनी के राजेश सिन्हा इस बार अपने परिवार के साथ एक हफ्ते के लिए केरल जाने की बात करते हुए कहते हैं कि हमने जश् को यादगार बनाने की पूरी तैयारी कर ली है, अब बस निकलने की देर है। विभिन्न शहरों के लिए हवाई किराए में भी वृध्दि हुई है। मुम्बई के लिए आम दिनों में हवाई किराया चार हजार रुपए तक रहता था, जो अब 5000 रु. से ऊपर निकल गया है। घड़ी चौक स्थित ट्रैवल एजेंसी संचालक ने बताया कि उनके यहां से लोगों ने अधिकतर मुम्बई और गोवा के लिए बुकिंग कराई है, जबकि कुछ ने केरल, मनाली और हैदराबाद की भी टिकटें खरीदी हैं।

Tuesday, December 7, 2010

धड़ल्ले से जारी है नकली सीडी का कारोबार




राजधानी में इन दिनों पायरेटेड सीडी का धंधा जोरों पर है। नई फिल्म रिलीज हुई नहीं कि उसकी सीडी बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक फिल्म निर्माता जितना फिल्म बनाकर कमाता है, उससे कहीं ज्यादा कमाई नकली डीवीडी-सीडी बनाने वाले कर रहे हैं। इससे न केवल फिल्म व्यवसाय से जुड़े लोगों का नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकार को भी करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है। लचर कानून व सख्त कार्रवाई के अभाव में इस धंधे से छोटे कारोबारी भी जुड़ चुके हैं, स्थिति यह है कि 150 से 200 रुपए तक मूल्य में मिलने वाली फिल्मों की डीवीडी कॉपी करके 20-25 रुपए में शहर के ठेलों में खुलेआम बिक रही है।
तेजी से पांव पसार रहा पायरेसी का व्यवसाय मनोरंजन उद्योग के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। छत्तीसगढ़ का फिल्मोद्योग भी पायरेसी के रोग से अछूता नहीं है। छत्तीसगढ़िया फिल्मोद्योग से जुड़े मोहन सुंदरानी कहते हैं कि पायरेसी का यह नेटवर्क राजधानी ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में फैला हुआ है। इससे निपटने के लिए छोटी-मोटी कार्रवाई से काम नहीं चलने वाला। वह मानते हैं कि इसके पीछे कोई बड़ा रैकेट काम कर रहा है और अगर पुलिस गंभीरता से पड़ताल करे तो एक सप्ताह के भीतर ही इसकी सभी परतें खुल सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि शहर में ओरिजनल सीडी बेचने वाली सिर्फ 4-5 दुकानें ही हैं। आमापारा स्थित एक सीडी विक्रेता ने बताया कि असली डीवीडी महंगी होने के कारण लोगों का रूझान सस्ती पायरेटेड कॉपी पर अधिक रहता है, क्योंकि यह 20 से 25 रुपए में उपलब्ध होने के साथ इसमें पांच से छ: फिल्में भी होती हैं।
ऐसा नहीं है कि पुलिस ने कभी छापेमारी नहीं की। शहर के कई ठिकानों में शिकायत के आधार पर कई बार दबिशें दी गई हैं, लेकिन सीमित कार्रवाई के चलते आरोपी अक्सर बच निकलते हैं और वापस अपने धंधे में लग जाते हैं। हर महीने करोड़ों के टर्न ओवर तक पहुंच चुके पायरेसी के धंधेबाजों को पकड़ने में आमतौर पर पुलिस गंभीर नहीं होती। कई बार म्युजिक कंपनियां जब शिकायत करती हैं तो छापा मार दिया जाता है। मौके पर मिले माल को जब्त किया जाता है, लेकिन कारोबार की जड़ में जाने और बड़ी मछलियों को पकड़ने की पुलिस ने कभी कोशिश नहीं की। पायरेसी नेटवर्क को तोड़ने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है, साथ ही सरकार को भी समस्या की सुध लेनी चाहिए। क्योंकि उसे भी करोड़ों के राजस्व का घाटा उठाना पड़ रहा है।
शहर में पायरेटेड सीडी के फुटकर विक्रेताओं की यूं तो हर जगह भरमार है, लेकिन घड़ी चौक, जयस्तम्भ चौक, जेल रोड, महाबो बाजार, पंडरी, तेलीबांधा, पचपेढ़ी नाका, आमापारा, सदर बाजार, के अलावा लगभग सभी चौराहों में ठेलों में सजाकर इनकी खुलेआम बिक्री की जा रही है। सरेआम जिस तरह कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन किया जा रहा है, उसमें प्रशासनिक चुप्पी हैरत करने वाली है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक वह सिर्फ शिकायत के आधार पर ही कार्रवाई कर सकते ह,ैं लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि इस संज्ञेय अपराध में किसकी शिकायत का इंतजार है। राजधानी होने के कारण यहां वीआईपी मूवमेंट भी अधिक रहता है, उसके बावजूद शासन-प्रशासन के लोगों की चुप्पी पायरेसी के धंधे को मौन सहमति दे रही है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे मामलों में पुलिस स्वयं कार्रवाई कर सकती है। कॉपी राइट एक्ट के तहत दर्ज किए गए मामले में तीन साल की सजा और बीस हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। यह संज्ञेय अपराध है इसलिए पुलिस को बिना मजिस्ट्रेट से आदेश लिए आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार है, लेकिन इस कानून में इतने अधिक पेंच हैं कि आमतौर पर आरोपी बच निकलता है।


कैसे चल रहा है धंधा
फिल्म कंपनियों ने सिनेमा हॉल में दर्शकों को खींचने के लिए फिल्म के साथ सीडी रिलीज करनी बंद कर दी है। फिल्म निर्माता अपने विदेशी अधिकारों को बेच देते हैं और वहां फिल्में पहले रिलीज हो जाती हैं। साथ ही सीडी भी रिलीज की जाती है। सीडी रिलीज होते ही यह आसानी से पाकिस्तान होते हुए भारत पहुंचती है। इस काम में अन्डरवर्ल्ड के लोग भी शामिल हैं। दूसरा लैब में फिल्मों के निगेटिव तैयार करते समय उसकी कॉपी कर लेते हैं, फिर इस मास्टर प्रिन्ट की मदद से करोड़ों सीडी तैयार कर ली जाती है। छत्तीसगढ़ में माल दिल्ली व मुंबई के बाजारों से आता है।

बड़ी कार्रवाई की जरूरत
रणनीति के तहत अभियान चलाकर पायरेसी के खिलाफ सख्त मुहिम छेड़ने पर ही इस पर रोक लग सकती है, क्योंकि मर्ज इतना बढ़ गया है कि छिटपुट कार्रवाईयों से कुछ नहीं होने वाला।

दक्षिण भारत के राज्यों में सख्ती
एक अनुमान के मुताबिक फिल्म जितनी कमाई करती है उसका दस गुना पायरेसी से जुड़े लोग कमा रहे हैं। जानकार मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में दक्षिण भारत की तर्ज पर सख्त कार्रवाई करते हुए आरोपियों पर गुंडा एक्ट लगाना चाहिए, जिससे आरोपी छह महीनों तक जेल में ही रहें। कॉपीराइट एक्ट को भी सख्त बनाए जाने की तुरंत आवश्यकता है, साथ ही सरकार की भी जिम्मेदारी है कि पायरेसी करने वालों से सख्ती से निपटे।

जनता भी आगे आएं
अगर आप सड़क किनारे या अवैध ढंग से बिकने वाली सीडी, डीवीडी की सूचना देना चाहते हैं तो इस नम्बर 18001031919 पर दे सकते हैं।

Sunday, November 14, 2010

हाथी समस्या: जस की तस


छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों का आतंक

छत्तीसगढ़ में हाथी आतंक और तबाही का पर्याय बन चुके हैं। पिछले दो दशकों के दौरान हाथियों ने राज्य में 120 से ज्यादा लोगों की जान ली है और करोड़ों की फसल को तहस-नहस कर डाला है। लेकिन पिछले एक माह से घटनाएं तो बढ़ी ही हैं, हाथियों के झुण्ड राज्य के नए इलाकों को भी अपनी चपेट मे ले रहे हैं। एक तरफ जंगली हाथी राज्य में जन-धन की हानि करते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकारें नित नई योजना बनाकर समस्या सुलझाने का प्रयास करती रही हैं, जमीनी सच्चाई यह है कि अभी तक कोई भी सरकारी कोशिश पीड़ितों को राहत नहीं दिला पायी है। जहां एक ओर सरकार मुआवजा बांटकर अपनेर् कत्तव्य की इतिश्री कर रही हैं वहीं दूसरी ओर लोग भय और आतंक के साये में रतजगा करने को मजबूर हैं।

छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों की समस्या मुख्यत: राज्य के उत्तरी और उत्तर पूर्वी इलाकों में है, यह इलाका झारखण्ड और उड़ीसा की सीमा से लगा हुआ है, जहां से हाथी राज्य में प्रवेश करते हैं, यह विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र है। हाथी समस्या के मूल में दो कारण हैं पहला यह कि पड़ोसी राज्यों में अत्यधिक बढ़ता खनन और वनों का दोहन जिससे जंगलों में रहने वाले हाथी अपने घरों (जंगल) से बेघर हो रहे हैं और वनों से आच्छादित छत्तीसगढ़ की ओर अपना रूख कर रहे हैं, दूसरा कारण यह है कि राज्य के इन ग्रामीण क्षेत्र में महुआ से शराब बनाई जाती है, महुआ की महक से हाथी बस्तियों की ओर खिंचे चले आते हैं और मादकता के खुमार में हिंसक हो जाते हैं।
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय पहली बार 1993 में कर्नाटक से आये विशेषज्ञों की सहायता से ''ऑपरेशन जम्बो'' में 14 हाथियों को पकड़ा गया, जिन्हें बाद में म.प्र. और छत्तीसगढ़ के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों में रखकर पर्यटन की दृष्टि से उपयोग में लाया गया। वर्ष 2000 में पड़ोसी राज्यों झारखंड और उड़ीसा से दोबारा हाथियों का प्रवेश प्रारंभ हो गया जिसकी संख्या बाद के वर्षों में बढ़ती ही गई। 2005 के अंत तक राज्य में जंगली हाथियों की संख्या 123 तक पहुंच गई, समस्या से राज्य के 450 से अधिक गांव प्रभावित हैं।
यूं तो इस समस्या के समाधान के लिए पूर्व में कई बार शासन स्तर पर प्रयास हुए, लेकिन राज्य निर्माण के बाद वर्ष 2003 में जब प्रदेश में अजीत जोगी की सरकार थी तब वन विभाग ने हाथी विशेषज्ञ पार्वती बरूआ को बुलाया था, जिन्हें असम में कई जंगली हाथियों को काबू में करने का अनुभव था। उनके निर्देशन में 'घेरा डालो अभियान' शुरू किया गया जिसमें एक हाथी की मृत्यु हो गई। उन दिनों कुल 32 हाथी अलग-अलग दल बनाकर उत्पात मचा रहे थे। हाथी की मौत के बाद यह मामला विधानसभा में भी गूंजा। इसके बाद वर्ष 2005 में भाजपा शासनकाल के समय मुख्य, वन्य प्राणी अभिरक्षक ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन चलने वाली हाथी परियोजना में छत्तीसगढ़ को भी शामिल करने के लिए परियोजना निदेशक को पत्र लिखा। इसके तहत केंद्र राज्यों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता मुहैया कराता है, यह परियोजना पूर्व से 13 राज्यों में लागू थी। पत्र का जवाब देते हुए परियोजना निदेशक ने राज्य को प्रस्ताव में आवश्यक सुधार कर दोबारा भेजने का निर्देश दिया। राज्य की ओर से भारत सरकार को दोबारा प्रस्ताव भेजकर तीन हाथी रिजर्व को विकसित करने की सहायता मांगी गई, तीन हाथी रिजर्वस में बादलखोल, तमोर पिंगला और लेमरू हाथी रिजर्व शामिल है। हालांकि बाद में भारत सरकार ने राज्य को हाथी परियोजना में शामिल कर लिया, लेकिन जैसा कि प्रदेश शासन ने सोचा था कि इससे समस्या सुलझ जाएगी वैसा नहीं हुआ, समस्या सुलझने की बजाय और भी उलझ गई है। राज्य सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि वह समाधान के प्रयास किस दिशा में करें। शासन द्वारा इस दिशा में कई विशेषज्ञों का भी सहयोग लिया गया। वर्ष 2006 में अर्थ मैटर्स फाउन्डेशन के प्रमुख माईक पाण्डेय ने हाथियों की समस्या से निपटने के लिए मुख्यमंत्री के समक्ष तीन सूत्रीय प्रस्ताव रखा जिसके तहत हाथी रिजर्व विकसित करना जहां पर शोध और पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा। दूसरा प्रस्ताव वृध्द एवं थके या बीमार हाथियों की शरणस्थली के तौर पर हाथी गांव विकसित करना जिसमें हाथी और महावत एक साथ रहेंगे, तीसरा और आखिरी प्रस्ताव यह था कि समस्या पैदा करने वाले हाथियों को पकड़कर सुदूर भेज दिया जाए।
पिछले एक माह से सरगुजा संभाग के कई इलाकों में जंगली हाथियों द्वारा कहर बरपाने की घटनाओं में तेजी आयी है, हाथियों के कई दलों ने गांवों में अचानक हमला कर जन-धन को भारी क्षति पहुंचायी है। रामानुजनगर में एक बच्ची को पटककर मारे जाने की घटना हो या लखनपुर क्षेत्र में कई एकड़ फसल को तहस-नहस करना, समस्या प्रभावित सभी जिलों में लोग भय और आतंक के बीच दिन काटने को मजबूर हैं। वहीं सरकारी कवायदों का फौरी लाभ फिलहाल पीड़ितों को नहीं मिला है और न ही निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना नजर आती है। इस बीच खबर आई है कि वन मंत्री विक्रम उसेण्डी कर्नाटक के दौरे पर जाने वाले हैं, जहां वह हाथी समस्या के स्थायी समाधान के लिए अध्ययन करेंगे।

हाथियों से जानमाल के नुकसान से बचाव के लिए जंगलों में उनके लिए आहार शृंखला का विकास सबसे अहम् है, जिस पर काम चल रहा है। यह प्रोजेक्ट एलीफैन्ट का ही एक हिस्सा है। आहार के लिए हाथी जंगलों से बाहर निकल रहे हैं। यदि उन्हें पूरा आहार मिल जाए तो वे जंगलों से बाहर नहीं आएंगे। धान की फसल तैयार होने के समय उनका आबाद क्षेत्रों में प्रवेश की घटनाएं आहार के लिए ही बढ़ जाती है। हाथियों के आबाद क्षेत्रों में प्रवेश से रोकने के लिए हल्ला पार्टियों का गठन किया गया है और सुरक्षा एहतियात के प्रति लोगों को जागरूक करने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। सरगुजा के सीएफ वाइल्ड लाइफ सेट्टी पनवर ने बताया कि पूरे सरगुजा सर्कल में जिसमें सरगुजा, कोरिया और जशपुर जिले आते हैं, चार दलों में 80 हाथी विचरण कर रहे हैं। आम तौर पर हाथियों के आने-जाने को रास्ता निश्चित होता है
इसलिए ऐसे रास्तों को चिन्हित कर जानमाल के नुकसान से बचाव की योजनाएं तैयार की गई हैं। ऐसे मार्गों पर हल्ला पार्टियों का गठन किया गया है और लोगों को सुरक्षा एहतियात के प्रति जागरूक करने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हाथियों की समस्या के स्थायी हल के लिए जंगलों में उनके लिए आहार शृंखला के विकास की जरूरत है। हाथी जंगलों में रहना पसंद करते हैं। यदि उन्हें पर्याप्त आहार जंगल में ही मिल जाएं तो वे बाहर गांवों का रूख नहीं करेंगे। इस पर काम चल रहा है, जो प्रोजेक्ट एलीफैंट का ही एक हिस्सा है। इसके परिणाम आने वाले वर्षों में दिखाई देंगे। आहार शृंखला के विकास का यह कार्यक्रम दस वर्षों में पूरा होगा। हल्ला पार्टी के अलावा हर डिवीजन में ट्रेकर पार्टी भी बनाई गई है, जो हाथियों के दल पर नजर रखती है और आबाद क्षेत्र में घुसने की संभावना पर लोगों को सतर्क करने तथा उसकी सूचना मुख्यालय में देने का काम कर रही है। उन्होंने बताया कि ये सारा काम योजनाबध्द ढंग से चल रहा है और इनसे जानमाल के नुकसान को काम करने में मदद मिली है।

Tuesday, October 26, 2010

सलमान की 'दबंगता' ने किया आकर्षित


छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस की दसवीं वर्षगांठ में राज्योत्सव के पहले दिन लोगों का भारी हुजूम साइंस कॉलेज मैदान में उमड़ पड़ा

फिल्म अभिनेता सलमान खान को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ आयोजन स्थल पर जमा थी, उनके मंच पर आते ही सारा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अतिउत्साह में कई दर्शकों ने सीटी बजाकर भी अपने चहेते स्टार का अभिनंदन किया। मंच का संचालन टीवी कलाकार कविता कौशिक कर रही थी इसके अलावा गायिका श्वेता पंडित ने एक के बाद एक कई गीत प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। अभिनेत्री स्याली भगत ने भी कई सुपरहिट गानों में डांस कर उपस्थित जनसमूह की तालियां बटोरी।


राज्योत्सव के उद्धाटन समारोह के बाद छुयी रंग बिरंगी आतिशबाजी से आसमान नहा उठा। लगभग पंद्रह मिनट तक चली आतिशबाजी ने आसमान में अद्भुत छटा बिखेर दी। इसके तुरंत बाद कार्यक्रमों के लिए बनाए गए अलग मंच में टीवी कलाार कविता कौशिक मंच संचालन के लिए प्रस्तुत हुई। उन्होंने अपन जानी पहचानी पुलिस सब इंस्पेक्टर वाले किरदार में जैसे ही यह कहा कि आपके बीच एक और 'दबंग' सब इंस्पेक्टर यानि की सलमान खान आ रहे हैं, तो वहां मौजूद भीड़ में सभी की निगाहें मंच पर टिक गई। सलमान ने स्टेज पर आते ही छत्तीसगढ़ वासियों का हाथ उठाकर अभिनंदन किया, लोगों ने भी उनका दिल खोकर स्वागत किया। सलमान ने कहा कि पहली बार रायपुर आए है और यहां आकर उन्हें बहुत खुशी हुई है। कविता जी के आग्रह पर उन्होंने फिल्म वान्टेड का मशहूर डायलॉग ''एक बार मैंने कमिटमेंट कर दिया तो फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता'' कहकर लोगों में रोमांच पैदा कर दिया। इस 'दबंग' खान ने अपने अंदाज में अपनी हालिया फिल्म दबंग के भी डायलॉग प्रस्तुत किया। सफेद शर्ट और जीन्स पैन्ट पहनकर आए अभिनेता ने दबंग स्टाइल में बेल्ट पर हाथ रखकर कुछ ठुमके भी लगाए। सलमान खान अपने व्यस्त कार्यक्रम के चलते दर्शकों के बीच कम ही समय रहे, इससे लोगों में मायूसी भी दिखी। लेकिन उसकी भरपाई करते हुए गायिका श्वेता पंडित ने साथी कलाकारों के साथ 'सुनो गौर से दुनिया वालों' गीत में डांस प्रस्तुत किया। श्वेता ने लगातार स्टेज सॉन्ग देते हुए ये मेरा दिल प्यार का दीवाना, मुन्नी बदनाम हुयी, यू माई लव समेत कई गीतों पर डॉन्स प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में एक और आकर्षण पूर्व मिस इंडिया और अभिनेत्री स्याली भगत रहीं। फिल्म 'द ट्रेन' के गाने वो अजनबी के साथ उन्होंने स्टेज पर इन्ट्री की और रात के ढ़ाई बजे, जय हो, जवानी जाने मन समेत कई गानों में ग्रुप डांस पेश किया। रंग बिरंगी फोकस लाइट में चमकदार परिधान पहने डांस कलाकारों ने वहां उपस्थित जनसमूह को पूरी तरह सराबोर कर दिया। हास्य कलाकार जिम्मी मोसेस ने फिल्मी कलाकारों की नकल के साथ लोगों को खूब लोटपोट किया। उन्होंने शाहरूख खान, सलमान, अमिताभ, सिध्दू समेत अमन वर्मा, बाबा रामदेव की मिमिक्री कर दर्शकों को गुदगुदाया। साथ ही राज कपूर, देवानंद, ऋतिक रोशन, अमिताभा बच्चन सावन में किस तरह से पतंग उड़ाएंगे इसका काल्पनिक हास्य प्रस्तुतिकरण भी किया।
कार्यक्रम शुरू होने से काफी पहले मैदान खचाखच भर गया था। सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम के चलते लोगों को दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। सलमान खान को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचे थे लेकिन उनकी उपस्थिति मंच पर कुछ देर के लिए ही रही जिससे लोगों को मायूसी हाथ लगी वहीं बहुत से लोगों को प्रवेश पास न मिलने के कारण कार्यक्रम से महरूम रहना पड़ा। हालांकि शाम तक लोग पास की व्यवस्था करने में लगे रहे।
विमानतल में चली प्रशंसको पर लाठी
सिने स्टार सलमान खान की एक झलक पाने को बेकरार प्रशंसकों को आज देर शाम माना विमानतल पर पुलिस लाठी की मार झेलना पड़ा। इससे विमानतल में अफरा-तफरी मच गई थी। बताया गया है कि फिल्म अभिनेता सलमान खान जैसे ही देर शाम चार्टर विमान से विमानतल पर उतरे प्रशंसकों में जोश छा गया। उनके विमानतल से बाहर निकलते ही प्रशंसक कार के पीछे दौड़ लगा दी। लिहाजा सुरक्षा और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस ने प्रशंसकों पर लाठियां लहरा दी तथा दौडा-दौड़ा कर पीटा। इससे प्रशंसकों में काफी रोष है तथा कुछ को मामूली चोटें आई है।

ट्रैफिक भार ने रोकी गाड़ियों की रफ्तार
राज्योत्सव के चलते आज जीई रोड पर गाड़ियों का तांता लग गया। कार्यक्रम स्थल जाने वाले इस मार्ग में ट्रैफिक भार इतना बढ़ गया कि पुलिस प्रशासन देर रात तक यातायात दुरूस्त करने में लगा रहा। रोड ब्लॉक जैसी स्थिति निर्मित होने से सभी गाड़ियां एक-दूसरे के पीछे रेंगते हुए चल रही थी। लोगों को इससे भारी असुविधा हुई साथ ही प्रशासन की पूर्व कवायद के बावजूद अतिरिक्त मशक्कत करनी पड़ी। साइंस कॉलेज मार्ग पर रोड के दोनों और बहुत सी गाड़ियां पार्क कर देने के कारण भी जाम की स्थिति बनी। लोगों की मजबूरी का फायदा ऑटो चालकों ने ज्यादा किराया वसूल कर उठाया और खूब चांदी काटी।

श्वेता के गीतों पर थिरके लोग
गायिका श्वेता पंडित ने यूं तो बहुत से सुपरहिट गाने गाए है पर उनका सीधा दीदार आज राज्योत्सव के मौके पर राजधानीवासियों को मिला। उनके प्रस्तुतिकरण से लोग इतना प्रभावित हुए कि कदम खुद को थिरके बिना नहीं रोक सके। श्वेता ने हालिया फिल्मों के गानों के अलावा कई मशहूर गानों पर अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने इस मौके पर कहा कि लोगों द्वारा दिया गया प्यार उन्हें यहां तक खींच लाया। वादा किया कि इसी तरह अपना बेहतर प्रदर्शन करती रहेंगी

सलमान को 35 साल पुराने दोस्त मिले

सलमान खान ने राज्य वासियों को दस साल पूरा होने की बधाई दी। उन्होंने कहा कि रायपुर में उनके बचपन के दो दोस्तों से भेंट हुई। आईजी मुकेश गुप्ता और सुदीप बछावत उनके साथ ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में पढ़ते थे।

दोनों से ही वे 35 सालों बाद रायपुर में मिले।इसके लिए छग को धन्यवाद दिया। सलमान ने छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया कहकर दर्शकों से तालियां बटोरी।

Sunday, October 24, 2010

त्यौहार में खरीददारी की धूम , बाजार की रौनक बढ़ी



दीपावली की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, बाजार में खरीददारों की गहमा-गहमी बढ़ती जा रही है। बाजार उत्पादों की लंबी श्रृंखला के साथ सज गए हैं और राहगीरों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। राजधानी वासियों को अब पहले की अपेक्षा खरीददारी के कई बेहतर विकल्प मिल चुके है जहां से वह अपनी पसंद चुन सकते हैं। लोगों का रूझान गहनें, कपड़ों, वाहन के अलावा कई बड़े बजट के उत्पादों की ओर भी बढ़ा है, वहीं शहर की दुकानें और शो रूम लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए नए-नए आईटम पेश कर ऑफरों से लुभा रहे हैं।
शायद ही ऐसी कोई कंपनी हो जिसने अपने उत्पादों पर ऑफर की घोषणा न की हो, ऑफरों से सजे शहर भर के होर्डिंग्स तो यही इशारा करते हैं कि बाजार इन दिनों ऑफरों से पटा पड़ा है। खरीददारी के इस मौसम में शहर के शॉपिंग मॉल्स भी बाजारों से पीछे नहीं हैं, कुल चार माल्स में लोग बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं, एक ही स्थान पर विविध प्रकार की वस्तुएं उपलब्ध होने के कारण लोगों का रूझान बढ़ा है। बहुत सी कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट की खरीद पर स्क्रैच कार्ड, डिस्काउन्ट ऑफर, कैश बैक, उपहार योजना समेत कई प्रकार की स्कीमों की झड़ी लगा दी है, वहीं कुछ प्रोडक्ट पर निश्चित गिफ्ट वाउचर भी प्रत्येक ग्राहक को दिए जा रहे हैं। सिटी मॉल में खरीददारी करने आयी रक्षा सिंह कहती हैं कि आज छुट्टी होने के कारण यहां आयी हैं और त्यौहार के लिए बहुत सारी खरीददारी करके जायेंगी, वहीं बच्चों की तो इस मौसम में सबसे ज्यादा चल रही है।
त्यौहार को लेकर उनके मन में अधिक उत्सुकता है, अपने मम्मी पापा के साथ आए दस वर्षीय अभय का कहना है कि वह इस दीवाली में नए कपड़े और बहुत सारे पटाखे खरीदेंगे। इस सबके बीच भला महिलाएं कैसे पीछे रह सकती हैं, खरीददारी करने में यह खासी दिलचस्पी ले रही हैं। आभूषण, कपड़े की दुकानों के अलावा त्यौहार के लिए आवश्यक चीजों की खरीददारी भी इनके द्वारा खूब की जा रही है। सदर बाजार में आभूषण खरीदने आयी श्रीमती बिमलेश का कहना है कि ज्वैलरी की दुकानों में इस बार गहनों की बहुत सी डिजाइन्स आयी हैं जो उन्हें लुभा रही हैं लेकिन वह अपने बजट के अनुसार कोई अच्छा सा डिजाइन चुनेंगी। पंडरी कपड़ा मार्केट, मालवीय रोड, जयस्तम्भ समेत शहर के सभी बाजारों में लोग पहुंच रहे हैं। मालवीय रोड स्थित एक साड़ी विक्रेता ने बताया कि उनके यहां तीन सौ से लेकर पंद्रह हजार रुपए तक की साड़ियां उपलब्ध हैं और रोजाना साड़ियों की अच्छी बिक्री हो रही है, साथ ही वह हर खरीद पर दस से लेकर 35 फीसदी तक की छूट इस फेस्टिवल सीजन में दे रहे हैं। वहीं यूथ्स के लिए भी बाजार ने अपनी बाहें फैला रखी है। उनको ध्यान में रखकर जीन्स, शर्ट, टीशर्ट समेत सभी कैजुअल और फॉर्मल कपड़ों की रेन्ज उपलब्ध है।
कपड़ों के अलावा इलेक्ट्रानिक उपकरणों की खरीद का बाजार भी इन दिनों गर्म है। टीवी, वाशिंग मशीन, फ्रिज, कम्प्यूटर समेत बहुत सी वस्तुओं पर निर्माता कंपनियों ने आकर्षक ऑफर दे रखे हैं। खरीददारी के अलावा बहुत से लोग शो रूम में प्रोडक्ट की जानकारी लेने भी पहुंच रहे हैं जिसमें नौकरी पेशा लोगों के अलावा स्ट्डेन्स भी शामिल हैं, इनके द्वारा लैपटॉप, कैमरा आदि की विस्तार पूर्वक जानकारी ली जा रही है।
शहर में वाहन पार्किंग की समस्या भले ही दिनों दिन विकराल होती जा रही हो, लेकिन ऑटो मोबाइल शो रूम में पहुंचने वाले लोग बेफिक्री से नए मॉडल्स की जानकारी लेकर खरीददारी कर रहे हैं, हो भी क्यों न आखिर वाहनों के सभी मॉडल्स में चल रही स्कीमें लोगों के बजट में आ रही है। अपने बेटे के लिए बाइक खरीदने आए अमर सिंह बताते हैं कि वह आज ही मोटर बाइक लेकर जा रहे हैं। इसके अलावा चौपहिया वाहन खरीदने वाले भी जानकारी लेने पहुंच रहे हैं। वाहन निर्माता भी इस मौके को पूरी तरह से भुना लेना चाहते है इसके लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। दीपावली के बारे में कहा जाता है कि लक्ष्मी पूजन से घर में लक्ष्मी आती है वहीं बाजार के रूख को देखकर बहुत से लोग यह कहने से भी नहीं चुके कि यहां तो लक्ष्मी जेब से जा रही है।

Tuesday, October 19, 2010

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना, मेला स्थल बना साइंस कॉलेज मैदान


राजधानी रायपुर में सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए मैदान न होने का खामियाजा साइंस कॉलेज को भुगतना पड़ रहा है, राज्योत्सव समेत साल भर जितने भी सार्वजनिक उत्सव शहर में आयोजित होते हैं

उनमें से 95 फीसदी कार्यक्रम आयोजन साइंस कॉलेज मैदान में होते हैं। ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार शैक्षणिक मैदानों का अन्य गतिविधियों में उपयोग पूरी तरह वर्जित है, इसी आदेश के आधार पर शहर की महापौर डॉ. किरणमयी नायक ने अभी हाल ही में राष्ट्रीय सेवक संघ को सप्रे शाला मैदान देने से मना कर दिया था हालांकि छुट्टी का हवाला देते हुए बाद में अनुमति दे दी गई। किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर राज्य सरकार कब तक सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की धज्जियां उड़ाकर शैक्षणिक मैदान का उपयोग मेला स्थल के तौर पर करती रहेगी?
ऐसे आयोजनों से कॉलेज का शैक्षणिक माहौल निश्चित रूप से प्रभावित होता है साथ ही खेल प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने वाले विद्यार्थी भी मैदान का उपयोग नहीं कर पाते। कहने को तो यह मैदान साइंस कॉलेज का है, लेकिन पूरे साल भर जिस तरह से कॉलेज इसके उपयोग से ही महरूम रहता है, उसका दर्द यहां के शिक्षकों के अलावा सभी छात्र-छात्राओं के चेहरे में साफ तौर पर देखा जा सकता है। छात्र अरशद शरीफ कहते हैं कि हमारे खेल टूर्नामेन्ट अक्टूबर-नवम्बर के बीच में होते हैं, लेकिन मेले के कारण हम प्रैक्टिस नहीं कर पाते, मजबूरी में हम बास्केटबॉल मैदान में क्रिकेट की प्रैक्टिस करते हैं, जो कि अपेक्षाकृत बहुत छोटा होता है। एक अन्य छात्र रविन्द्र कहते हैं कि हमारा मैदान खाली न होने की वजह से हमें दूसरे मैदानों का रूख करना पड़ता है, जिससे कई प्रकार की व्यवहारिक दिक्कतें होती हैं। ऐसा नहीं है कि इस समस्या से कॉलेज प्रशासन अवगत नहीं है, शिक्षक भी विद्यार्थियों की इस समस्या से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं। कॉलेज के खेल शिक्षक अनिल दीवान कहते हैं कि निश्चित तौर पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैदान का उपयोग हम अपने ही बच्चों के हित में कर पाने से वंचित हैं अपेक्षा जताई कि मैदान को पूरी तरह से कॉलेज के सुपुर्द कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि लगातार आयोजनों से मैदान बदहाल होता जा रहा है कचरा, गंदगी फैलाने से जमीन प्रदूषित और बंजर हो रही है, जगह-जगह गङ्ढे खोद दिए जाने से मैदान का आकार ही बदलता जा रहा है तथा दिन में होने वाले आयोजनों से यहां की कक्षाएं प्रभावित होती हैं। श्री दीवान की बातों से एनएसएस प्रभारी डॉ. रेनू सक्सेना भी अपनी पूर्ण सहमति व्यक्त करती हैं। सार्वजनिक आयोजनों से सिर्फ खेल खिलाड़ियों को ही असुविधा नहीं होती, बल्कि अन्य छात्र-छात्राएं भी इससे प्रभावित होते हैं। कहने को तो कक्षाएं खुली रहती हैं पर उपस्थिति बहुत ही कम होती है। छात्रा गरिमा त्रिपाठी कहती हैं कि राज्योत्सव के समय क्लास बंद रहती है, और कुछ इसी प्रकार के विचार शिल्पा चौधरी के भी हैं।
कॉलेज मैदानों में सार्वजनिक कार्यक्रमों को आयोजित करना किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता, वो भी तब जब यह मैदान शहर के बीचों बीच स्थित हो। ऐसे आयोजनों से कई प्रकार की दिक्कतें शहर के बाशिंदों को उठानी पड़ती है। भीड़-भाड़ और ट्रैफिक को सीमित स्थान में नियंत्रित करना पुलिस प्रशासन के लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता है। इन्हीं समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए वर्ष 2007 में तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत ने दिल्ली के प्रगति मैदान की तर्ज पर मोवा मंडी के पीछे एक स्थायी मेला स्थल बनाने पर चर्चा की थी और उम्मीद जतायी थी कि अगले वर्ष यानि 2008 से सारे सार्वजनिक आयोजन वहीं किए जाएंगे। हालांकि मामला आगे नहीं बढ़ पाया और मामला फाइल और बैठकों में ही कहीं गुम हो गया, तब से अब तक इस ओर किसी ने कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।


हम सरकारी आदेश से बंधे हैं: प्राचार्य


साइंस कॉलेज के प्राचार्य केएन बाबत से बातचीत
प्र.- जिस तरह से मैदान का गैर शैक्षणिक उपयोग बढ़ रहा है, वह कितना उचित है?
उ.- मैदान शासन का है, वह जब चाहे इस मैदान का प्रयोग अपनी आवश्यकतानुसार कर सकता है, शासकीय महाविद्यालय होने के नाते हम सरकारी आदेश से बंधे हुए हैं, सभी आयोजन उच्च शिक्षा विभाग की अनुमति से होते हैं।


प्र.-ऐसे आयोजनों से पढ़ाई बाधित होती है, क्या आपने इस दिशा में कोई प्रयास किया?
उ.- मेरी जानकारी में अभी तक ऐसी कोई बात नहीं आयी है और मैंने हाल ही में पदभार सम्भाला है। अगर ऐसा कुछ होता है तो इस दिशा में जरूर प्रयास किए जाएंगे।


प्र.- मैदान का एक हिस्सा स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया को सौंप दिया गया है, क्या इससे नैक की रैकिंग प्रभावित होगी।
उ.- नैक अपनी रैकिंग इस आधार पर देता है, कि आप उपलब्ध संसाधनों का कितना बेहतर इस्तेमाल करते हो, जब नैक की टीम यहां दोबारा आएगी तो उसके संज्ञान में यह बात होगी कि शासन के निर्देश पर मैदान का हिस्सा सौंपा गया है, इसलिए मैं इस बात से पूरी तरह आश्वस्त हूं कि रैंकिंग बिल्कुल प्रभावित नहीं होगी।


प्र.- एक आखिरी सवाल सार्वजनिक आयोजनों से मैदान खराब होते हैं, उस पर आपकी ओर से क्या कार्रवाई होती है?
उ.- आयोजकों से हम सुरक्षा राशि जमा कर लेते हैं, मैदान खराब करने वालों की यह राशि जब्त कर ली जाती है और उन्हें काली सूची में डाल दिया जाता है। सरकारी आयोजन इससे मुक्त रहते हैं।

Monday, October 18, 2010

जयकारों के साथ दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन


विसर्जन के दौरान नम हुई श्रद्धालुओं की आँखें


नौ दिन तक मां की जय जयकार से गूंजने वाले दुर्गा पंडाल प्रतिमा विसर्जन के साथ ही सूने पड़ गए। श्रध्दालुओं ने परंपरागत तरीके से मां को विदाई दी। देवी स्थलों पर स्थापित मां की प्रतिमा को जयघोष के साथ नदी तक ले जाकर विसर्जन किया गया। जुलूस के साथ महिलाओं की टोली, जसगान करती हुई चल रही थी। महिलाओं ने सिर पर कलश जंवारा धारण कर मां को विदाई दी।

राजधानी में कल सुबह से ही दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन का सिलसिला शुरू हो गया था, विसर्जन खारून नदी सहित शहर के विभिन्न तालाबों में किया गया। छोटी बड़ी सभी दुर्गोत्सव समितियों ने रविवार को प्रतिमाओं का विसर्जन महादेव घाट में किया। आयोजन स्थलों से माता के जयघोष के साथ प्रतिमाएं उठाई गई, ढोलक और मंजीरे की धुन पर मां के जसगीत गाती महिलाओं की टोली को देखने के लिए लोगों की अच्छी खासी भीड़ जुटी। सामने युवाओं की टोलियां भी थिरकती हुई चली साथ ही चौराहों पर जमकर आतिशबाजी की गई। कुछ दुर्गोत्सव समितियों ने प्रतिमा विसर्जन अपने निकट के तालाबों में ही कर दिया, बंधवा तालाब, महाराजबंद तालाब, बूढ़ा तालाब सहित कई तालाबों में विसर्जन किया गया। इससे पहले कालीबाड़ी स्थित बंगाली दुर्गोत्सव समिति द्वारा स्थापित प्रतिमा के समक्ष सुबह महादशमी की पूजा-अर्चना की गई, साथ ही महिलाओं ने दोपहर को मातृवरण व सिंदूर निवेदन किया, शाम को माता की शोभायात्रा निकाली गई जो कि विभिन्न मार्गों से होती हुई वापस मंदिर परिसर पहुंची। बढ़ईपारा में भी जंवारा कलश की शोभायात्रा निकाली गई। भक्त मान्यतानुसार शरीर में सांग और बाना धारण कर नंगे पांव शोभायात्रा में शामिल हुए। महिलाएं सफेद रंग की लाल किनारे वाली साड़ियां पहने जंवारा उठाए हुए चली।

जस गीतों के साथ भक्त थिरकते रहे। शोभायात्रा बढ़ईपारा से तात्यापारा होते हुए कंकाली तालाब पहुंची। वहीं रीति-रिवाज के अनुसार जंवारा कलश का विसर्जन किया गया। सांग और बाना भी शरीर से निकाले गए। शहर में कई स्थानों पर भक्तों ने भव्य जुलूस निकाला। जंवारा विसर्जन से पहले श्रध्दालुओं ने नौ दिनों तक स्थापित रहे। कलशों का ज्योति विसर्जन किया था। प्रतिमा विसर्जन का सिलसिला आज भी जारी रहा और श्रध्दालु पूरे जोश के साथ जुलूस में शामिल हुए

Monday, October 11, 2010

अवांछित कॉल के जरिए ग्राहकों की जेब में डाका


मोबाइल कंपनियां उड़ा रहीं ट्राई के दिशा-निर्देशों की धज्जियां

सुविधा एवं दूरसंचार के माध्यम से सजग रहने मोबाइल फोन का इस्तेमाल लोग करते हैं, लेकिन मोबाइल कंपनियां बिल के अतिरिक्त वसूली की कवायद में जुट गई हैं। मोबाइल कंपनियां ट्राई ने दिशा-निर्देश एवं नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर मोबाइल ग्राहकों की जेब में डाका डाल रही है जानकारी के अभाव में लोग ऐसे अवांछित कॉल का शिकार हो जाते हैं और सैकड़ों रुपए गंवा देते हैं।
मैं हूं सलोनी सी लड़की, क्या आप मुझसे दोस्ती करोगे? चार्ज प्रति मिनट दस रुपया या बोरिंग टिंरग टिंरग को अलविदा कहें और नए हिट गानों को अपनी कॉलर टयून बनाएं, जैसी ढेरों कॉल कर मोबाइल कंपनियां अपने ग्राहकों को चूना लगा रही हैं। मोबाइल उपभोक्ता आए दिन कंपनियों के इस ऑफर के साथ कई गीत सुनाए जाते हैं जिसके 20 से 40 रु. तक काट लिए जाते हैं। अंधेरगर्दी का आलम यह है कि आपने गाना सेव किया हो या न किया हो पैसे कटते ही हैं। बीएसएनएल के ग्राहक पंकज कुमार का कहना है कि इस फेर में अब तक उनके 60 रु. कट चुके हैं, कस्टमर केयर में शिकायत करने के बावजूद अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है।
उपभोक्ताओं को किसी भी वक्त कंपनी की तरफ से फोन आता है और मधुर आवाज में ऑफरों की बरसात कर दी जाती है, ध्यान देने योग्य तथ्य यह है इस प्रकार की स्कीमों को संदेशों के माध्यम से भी दिनभर भेजा जाता है, जिससे लोगों के कार्य में अनावश्यक रूप से विघ्न पड़ता है। साइंस कॉलेज में भौतिक विभाग के शिक्षक समरेन्द्र सिंह कहते हैं कि उन्हें दिनभर इस तरह के मेसेज और कॉल आते रहते हैं जिससे उनके अध्यापन कार्य में विघ्न पड़ता है। कई बार वह जरूरी कॉल समझकर कॉल रिसीव कर लेते हैं और कई बार वह अपने परिचितों का फोन भी इस भ्रम में नहीं उठा पाते कि कंपनी का ही कॉल होगा। इस प्रकार शहर के लोगों का धन और समय अनावश्यक रूप से व्यय हो रहा ह,ै जिसका पूरा फायदा टेलीकॉम कंपनियां उठा रही हैं।
क्रिकेट, समाचार, भविष्यफल, चुटकुले, यात्रा संबंधी विवरण के अलावा मोबाइल ऑपरेटर ग्राहकों की जेब से पैसा निकालने के लिए नित नए हथकण्डे अपना रही हैं, जिसमें लोगों को प्रेम की जानकारी देने के साथ प्रेमी-प्रेमिकाएं भी उपलब्ध कराने का दावा किया जा रहा है, साथ ही करोड़पति बनाने के हसीन सपने दिखाकर भी लोगों को खूब बेवकूफ बनाया जा रहा है। इंजीनियरिंग के छात्र अफशानुल हक को पिछले दिनों एक एसएमएस मिला जिसमें लिखा था कि आपने लकी ड्रॉ में दो करोड़ का ईनाम जीता है, जिससे वह भौंचक रह गए, चूंकि यह सर्विस मैसेज था इसलिये नंबर की पहचान नहीं हो सकी।
अगर आप अपना एकाउंट या वैलिडिटी जांचना चाहते हैं तो आपको अपना ज्योतिष जानने, गाना सुनने या डाउनलोड करने की सलाह मुफ्त में दी जाती है और दर भी कोई साधारण नहीं 6, 7, 8 या 10 रुपए प्रति मिनट तय रहती है। यह जानकारी कुछ इस प्रकार से सेट की जाती है ग्राहक बार-बार संदेश भेजे जिससे अधिक कमाई की जा सके और यदि कॉल है तो आपको पैसा काटने के बाद बताया जाएगा कि आपकी इतनी राशि काट ली गई है।
ग्राहकों की कम जानकारी का मोबाइल कंपनियां बहुत फायदा उठा रही हैं, कहने को सभी आपरेटरों ने टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के निर्देशानुसार अनचाही कॉल्स को रोकने वाली सुविधा दे रखी है, किंतु इस सुविधा का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं किया गया। टेलीकॉम कंपनियों की वेबसाइट में जितना नए-नए ऑफर फ्लैश होते हैं उसकी तुलना में ग्राहक हितों की संरक्षक इस सुविधा को नजर अंदाज कर दिया गया है। कई लोगों का आरोप है कि उनके नंबरों को मार्केटिंग कंपनियों को सौंप दिया जाता है, जिससे उनकी निजता तो भंग होती ही है साथ ही सेल्स एजेंटों द्वारा उन्हें समय-समय पर प्रोडक्ट खरीदने के लिए परेशान भी किया जाता है, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है कि मोबाइल कंपनियां ग्राहकों का डेटाबेस मार्केटिंग कंपनियों से साझा कर रही है, लेकिन इस संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता क्योंकि नए सिमों में भी यह दिक्कत पहले ही दिन से शुरू हो जाती है।


90फीसदी से अधिक लोग नहीं जानते नोडल अधिकारी का पता

मोबाइल ग्राहकों की शिकायतों को दूर करने के लिए हर मोबाइल कंपनी द्वारा ग्राहक सेवा केन्द्र या सहायता नंबर जारी किए हैं, किंतु बहुत से लोगों की शिकायत का निवारण कर पाने में कॉल सेंटर असमर्थ हो जाते हैं, इसलिए ट्राई के निर्देशानुसार हर कंपनी ने अपने यहां नोडल अधिकारी को नियुक्त कर रखा है, जिससे अपील करके शिकायतकर्ता समाधान पा सकता है। ट्राई के आंकड़ों के अनुसार कॉल सेंटर द्वारा ग्राहक समस्याओं का समाधान न कर पाने में बीएसएनल सबसे आगे रहा। बीएसएनएल के 40 प्रतिशत, एयरटेल के 34 प्रतिशत, आर कॉम के 32 प्रतिशत, रिलायंस जीएसएम के 35 प्रतिशत और आईडिया सेल्युलर के 19 प्रतिशत ग्राहक कॉल सेंटर से संतुष्ट नहीं हुए। नब्बे प्रतिशत से अधिक ग्राहक नहीं जानते कि कॉल सेंटर के बाद कहां शिकायती अपील करनी है, इस मामले में वोडाफोन के ग्राहक सबसे आगे हैं। वोडाफोन के 99 प्रतिशत ग्राहक, एयरटेल के 97 प्रतिशत, टाटा के 94 प्रतिशत, बीएसएनल के 94 प्रतिशत, रिलायंस के 97 प्रतिशत और आईडिया के 95 प्रतिशत ग्राहकों को शिकायत अपील करने के लिए नोडल अधिकारियों की जानकारी नहीं है। समस्त आंकड़े ट्राई 2009 तक की सेवाओं के आधार पर इस वर्ष जारी किए गए हैं।

Wednesday, August 4, 2010

प्रदूषित हो रहा है पवित्र अमरनाथ धाम


शिवभक्तों में कौन ऐसा होगा जो अमरनाथ के दर्शन करने नहीं जाना चाहता। हर शिवभक्त की यह आकांक्षा होती है कि वह जीवन में कम से कम एक बार पवित्र गुफा में स्थित इस हिमलिंग के दर्शन करें, जिसकी कथा सुनने मात्र से अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं । ऐसे पवित्र स्थान में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर श्रद्धालुआे में चिंता होना स्वाभाविक है । आज पहलगाम से लेकर पवित्र गुफा तक प्लास्टिक की खाली बोतलें, पोलीथीन की थैलियां तथा थर्माकोल के बर्तन बिखरे पड़े हैं । एक अत्यंत पवित्र धर्मस्थल में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण पर नियंत्रण करना आवश्यक हो गया है । जम्मू व कश्मीर सरकार, पहलगाम विकास प्राधिकरण, श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड तथा स्थानीय प्रशासन सभी इस बढ़ते प्रदूषण को लेकर गंभीर दिखाई नहीं देते हैं। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में १२,७२३ फीट ऊँचाई पर हिम आच्छादित पर्वतों के बीच स्थित भगवान अमरनाथजी की महिमा निराली है । मनमोहन झीलों, चश्मों, देवदार व चीड़ के घने जंगलों के बीच से बहती दूधिया नदियों की कलकल आवाज में श्री बाबा अमरनाथ की ध्वनि स्पंदित होती है । पर्वतों के मध्य में लगभग ६० फीट लम्बी, ३० फीट चौड़ी और १५ फीट ऊँची उबड़-खाबड़ गुफा के अंदर प्रतिवर्ष हिमलिंग की रचना होना अपने आप में एक आश्चर्य है ।

अमरनाथ यात्रा के आधार शिविर पहलगाम और बालटाल, चन्दनवाड़ी, पिस्सुघाटी, समुद्रतल से १४९०० फीट की ऊँचाई पर स्थित महागुनस टाप, जोजेपाल, पर्वतों के बीच गहरे हरे नीले जल की विशाल जलराशि शेषनाग झील, पोषपत्री तथा चंदनवाड़ी में अतुलनीय सौंदर्य बिखरा पड़ा है । इन रास्तों पर चलते वक्त ऊँचाई का अहसास नहीं होता और यह भी विश्वास नहीं होता कि प्रकृति इतनी सुंदर हो सकती है । मन को अपूर्व शांति व सुख देने वाली कश्मीर घाटी में यात्रियों द्वारा फैलाया जा रहा प्रदूषण मन को विचलित कर देता है। इंसान द्वारा फैलाये गये इस प्रदूषण का प्रारंभ दोनों आधार शिविरों बालटाल और पहलगाम से ही हो जाता है । पहलगाम आधार शिविर के पास बहने वाली नदी के किनारे शौच के बाद फेंकी गयी पैकेज्ड वाटर की बोतलें तथा खाद्य पदार्थोंा की पॉलीथीन सर्वत्र बिखरी दिखाई देती है । पिछले कुछ सालों से अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वाले लोगों की बढ़ती संख्या का ही परिणाम है कि लिद्दर दरिया का पानी पीने लायक नहीं रह गया है और बैसरन तथा सरबल के जंगल जो अभी तक मानव के कदमों से अछूते थे। अब अपने अस्तित्व की लड़ाई में लगे हैं। पिछले साल यात्रा के बाद ५५ हजार किग्रा. कूड़ा-करकट यात्रा मार्ग पर एकत्र किया गया था, इसमें आधा प्लास्टिक था और जो दरियाआे मे बहा दिया गया था, उसका कोई हिसाब नहीं है। श्री अमरनाथ गुफा के पास बहने वाली नदी में पानी की खाली बोतलें तैरती दिखाई देती हैं । सबसे ज्यादा प्रदूषण तो उस समय दिखा जब शेषनाग झील के पास स्थित नागाकोटी के मनोरम जल प्रपात में अज्ञानी यात्रियों द्वारा सैकड़ों प्लास्टिक की बोतलें व खाद्य पदार्थों के पोलीथीन फेंककर इसे गंदा किया गया । श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान स्थानीय निवासियों द्वारा जगह-जगह लगायी गयी खाद्य सामग्री की दूकानें तो खूब हैं, लेकिन खाली बोतलों, पॉलीथीन तथा थर्माकोल के कप व गिलास को यथास्थान फेंकने की व्यवस्था नहीं है। श्री अमरनाथ श्राइन बार्ड की कार्यप्रणाली भी सुस्त व निष्क्रिय लग। बोर्ड ने कहीं भी ऐसे इंतजाम नहीं किये जिससे इस पवित्र अमरनाथ धाम को प्रदूषित होने से बचाया जा सके । श्री अमरनाथ गुफा के ठीक नीचे स्थित हेलीपेड के पास भी कभी नष्ट न होने वाली प्लास्टिक व पोलीथीन जहां तहां बिखरी पड़ी है । श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड में श्रद्धालुआे को जागरूक करने के लिए कोई प्रयास किया हो ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है। यही हाल पहलगाम विकास प्राधिकरण (पी.डी.ए.) का भी है । पूरी यात्रा के दौरान ऐसा लगा कि जिस तरह से श्री अमरनाथ धाम में घातक प्रदूषण बढ़ रहा है । यदि उसे रोकने के लिए समय रहते ठोस उपाय नहीं किये गये तो वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर की यह मनोरम वादी प्लास्टिक के कचरे से पट जायेगी जिससे घाटी के पर्यावरण को अपूर्णनीय क्षति पहँुचेगी । शिव को अनेक नामों से जाना जाता है । शिवभक्त शंकर ने शिव को शंकर कहा था, शंकर का शाब्दिक अर्थ है - शं यानी कल्याण तथा कर याने करने वाले अर्थात कल्याण करने वाला । ऐसे शंकर के पवित्र धाम को यदि हम अज्ञानतावश प्रदूषित कर रहे हैं , इससे जनता को जागरूक करने के लिए एक जन जागरूकता अभियान की जरूरत है जिसे श्रद्धालुआे, शिवभक्तों की सेवा करने वाले भण्डारे वाले, पहलगाम विकास प्राधिकरण, श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड, स्थानीय दुकानदारों तथा प्रशासन के द्वारा जन सहयोग से चलाया जा सकता है। भारतीय दर्शन व विज्ञान की उत्कृष्ट परम्परा के प्राण कहे जाने वाले, कल्याण करने वाले देवता शिव के पवित्र धाम में प्रदूषण नियंत्रण करने का उचित समय आ गया है ।

Tuesday, August 3, 2010

Sohrabuddin Before The Shots Rang Out


Four years after they were killed, Sohrabuddin Sheikh and Tulsiram Prajapati are stalking their alleged one-time masters in Gujarat with a vengeance. The duo from Madhya Pradesh may have begun their criminal career in the state, but Rajasthan was their big turf even while they spread wings in Gujarat.

When the police shot him in an alleged fake encounter on November 26, 2005, near Ahmedabad, Sohrabuddin had four police cases against him in Gujarat, one in Rajasthan, two in Maharashtra and a dozen-odd cases in MP. Until he fell, Sohrabuddin perhaps had no clue that he was only a pawn in the hands of politicians and policemen who used him to run a bigger extortion network. The CBI now says Sohrabuddin's masters stage-managed the shootout at a prominent Ahmedabad builder's office in 2004.

If the CBI findings are anything to go by, it was all about money. Extortions were allegedly run and managed by senior police officers for their political bosses and the dead men were mere instruments. According to the CBI chargesheet, Amit Shah, the former Gujarat minister of state for Home who is now in judicial custody, had entrusted the job of eliminating Sohrabuddin Sheikh to three senior IPS officers: D G Vanzara, Rajkumar Pandiyan and Abhay Chudasama.

Sunday, August 1, 2010

सोहराबुद्दीन का बचाव आखिर क्यों ?


Jis Sohrabuddin ka bachaav ho raha hai usko zinda rahte huwe jahan jail mein hona chahiye tha wo marne ke baad auron ko jail ki hawa khila raha hai, Sohrabuddin ek aatankwaadi tha jisey encounter mein maar diya gaya...... Kya fark padta hai ki wo encounter asli tha ya farzi ? Kya Ye Rajdharm hai ki ek Aatankwaadi ko Khula Chodh diya jaaye taaki wo saare desh ke liye khatra ban jaaye. Desh mein aur bhi Farzi Encounter huwe hain jo nahi hone chahiye they...... Lekin Yahan Ye Dhyan Rakhna Chahiye ki Yahan Ek Proved Criminal ka Encounter kiya gaya hai Jo ki mere niji vichaar mein sahi hai........ Aur Desh ki Sarkaaro ko ek dusre ke khilaaf jahar nahi ugalna chahiye, CBI Ka Durupyog koi nayi baat nahi hai.

Sohrabuddin Ek Aatankwadi Tha Jisey Maar Diya Gaya, Aur Ye Sahi Hai. Sohrabuddin Ka Marna Desh ke liye Zaroori tha. BJP ya Congress apne apne faayde ke liye iska Raajneetikaran kar rahi hain. Aur Rahi baat Tulsi aur Kausar ki to Genhu ke saath Ghun Pis hi jaata hai.

Saturday, May 29, 2010

Tuesday, May 18, 2010

"उसके गर्भाशय में 10-12 हफ्ते का शिशु भ्रूण था"


निरुपमा की तस्वीर को कम से कम दो-तीन बार ध्यान से ज़रूर देखिएगा....आपको नीरू की इस तस्वीर में कहीं न कहीं अपनी बेटी...बहन...ज़रूर नज़र आएगी....और अगर नहीं आती है तो फिर अपने आप को आइने में दो-चार बार ज़रूर देखिएगा .कि क्या आपमें इंसान होने के कितने लक्षण बचे हैं.
नीरू की गलती थी कि वो सही रास्ते से अपनी मंज़िल पाना चाहती थी...अगर नीरू बिना घरवालों की मर्ज़ी के ये शादी कर लेती तो ज़्यादा से ज़्यादा एक दो साल बाद यही लोग उसे वापस अपना लेते...पर हमारे तथाकथित सभ्य समाज को सीधे और सरल तरीके पसंद ही कहां हैं....हमारी गौरवशाली संस्कृति का दम भरने वाले ठेकेदार अब कहां हैं...और क्या नाम देंगे इसे...
जानता हूं कि अभी भी कई लोग सवाल करेंगे कि क्या गारंटी है कि नीरू ने आत्महत्या नहीं की उसका क़त्ल हुआ है....तो एक बार उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का लिंक...ज़रूर देखें) पूरा ज़रूर पढ़ें....चलिए आपको बता ही देते हैं सरल भाषा में ये क्या कहती है....

* उसकी श्वसन नली में कंजेशन था....
* उसके दोनो फेफड़ों में भी कंजेशन था...
* ह्रदय के दोनो कोष्ठों में रक्त था...
* उसके लिवर में कंजेशन था....
* उसकी किडनी में कंजेशन था...
* स्प्लीन में कंजेशन था...

मतलब कुल जमा ये कि उसकी मौत दम घुटने से हुई...और ये सामान्य बुद्धि है कि कोई भी अपना गला खुद घोंट कर आत्महत्या नहीं कर सकता है....
लेकिन सबसे दर्दनाक सच सामने लाती है पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की आखिरी लाइन.....

"उसके गर्भाशय में 10-12 हफ्ते का शिशु भ्रूण था"
बहुत से लोग अब इस पर भी उंगलियां उठाएंगे...नाक भौं सिकोड़ेंगे...क्योंकि समाज की सभ्यता का यही तकाज़ा है....किसी को नहीं बख्शेंगे ये लोग....पर मैं केवल ये जानता हूं कि अगर ये हत्या है तो ये दोहरा हत्याकांड है....
क्या कहूं....जिस धर्म...जाति और ईश्वर की ये समाज दुहाई देता है क्या वाकई उसका कोई अस्तित्व भी है....

क्या ये वही लोग हैं जो साल में दो बार 8 दिनों तक नारी शक्ति की पूजा पाठ कर्मकांड कर के नवें दिन कन्याओं के पैर छूते हैं.
माफ करना नीरू हम तुम्हें बचा नहीं पाए...पर क्या अफसोस करें तुम्हारे जैसी हज़ारों नीरू हम खो चुके हैं...शायद खोते भी रहेंगे....
मेरा पुनर्जन्म में कतई यकीन नहीं है...पर मैं जानता हूं एक और नीरू कहीं और जन्म ले चुकी है...उसकी होनी में क्या लिखा है....हक...या मौत

Monday, May 10, 2010

भविष्य का मीडिया


भारत में आधुनिक मीडिया जिस तरह से अपना दायरा बढ़ाता जा रहा हैं और समाचारों को जल्द से जल्द पहुचाने की होड में जो प्रतिस्पर्धा बढी है वह समाचार की गुणवत्ता के लिए किस हद तक प्रासंगिक है यह विचार करने योग्य विषय है। मीडिया के प्रभाव के चलते व्यवस्था में जो पारदर्शिता आयी है उसका श्रेय भले ही मीडिया को दिया जाता रहा हो किंतु इस तथ्य से भी मुंह नही मोड़ा जा सकता कि मीडिया कन्टेन्ट को लेकर उसकी आलोचना भी होती रही है। भारत के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में देखें तो पायेंगे कि देश में आधुनिक मीडिया का विकास अधिक पुराना नहीं है जहां पहले सिर्फ समाचार पत्रों का ही प्रभुत्व था वही ९० के दशक में सेटेलाइट चैनलों की दस्तक के साथ ही देशवासियों को मीडिया का नया स्वरूप देखने को मिला। बढते प्रभाव के कारण मीडिया की आलोचना भी हो रही है।

बात सिर्फ खबरिया चैनलों तक सीमित होती तो भी ठीक था। लेकिन जिस पैमाने पर फूहडता और अश्लीलता को मनोरंजन चैनलो में बढावा दिया जा रहा है वह मीडिया के जमीनी प्रभाव और विश्वसनीयता के लिये खतरे की घण्टी है वैसे हमारे

देश

में चैनलों पर चलने वाले कार्यक्रमों के लिए कोई मानक नहीं है जिसका जो मन करता है उस हिसाब से कार्यक्रम बना कर परोस देता है। ऐसा लगता है कि मीडिया सिर्फ सनसनी फैलाकर सुर्खियां बटोरने और कम से कम समय में पैसा कमाने का साधन मात्र बन कर रह गया है मनोरंजन चैनलों के रियेलिटी शो में अगर गालियों की भरमार रहती है तो खबरिया चैनलों के समाचार दुनिया खत्म होने की भविष्यवाणियां करते नहीं थकते मनोरंजन चैनल मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता ओर फूहडता दिखा रहे हैं सबसे तेज चलने की होड में समाचार चैनल भी पीछे नहीं है वे खबरों के नाम पर राखी के नखरे और भविष्यवाणियों के नाम पर ज्योतिषियों के टोटकों को परोस रहे हैं। सरकार द्वारा आपत्ति जताने के बावजूद मीडिया दिग्गजो पर कोई असर नहीं हुआ और वह इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बताकर सरकार के तर्क को भी खारिज करने से नही हिचके।

गहराई से छानबीन करने पर मीडिया की अन्दरूनी तस्वीर कुछ इस प्रकार से सामने आयी दरअसल नब्बे के दशक से अपनाये गए नवीन सुधारों के बाद से ही मीडिया एक ऐसा उद्यम बन गया है जिसका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना है। आज का मीडिया सिर्फ उस सामाजिक तबके पर केन्द्रित है जिसके पास अतिरिक्त क्रय शक्ति है और यही वह तबका है जो उपभोक्तावाद का शिकार है। इन रूझानों के साथ मीडिया की साख पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मीडिया और समाज के बीच एक खाई पैदा हो गई है व्यापारीकृत मीडिया काफी हद तक समाज का प्रतिबिम्ब नहीं रह गया है और तो और समाज को प्रभावित करने के उसकी क्षमता भी संकीर्ण होती जा रही है एक ओर विज्ञापन उद्योग मीडिया और उपभोक्ता के पारस्परिक सम्बन्ध इस विकासशील समाज में अभी परिभाषित ही हो रहे हैं तो दूसरी ओर भारतीय समाज लोकतंत्र और मीडिया के बीच के सम्बन्ध एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिनकी स्पष्ट तस्वीर खींचना आज की तारीख में सम्भव नहीं दिखता।

भारत सरकार द्वारा हाल ही में गठित की गई टास्क फोर्स काफी हद तक भविष्य के मीडिया की वास्तविक तस्वीर खींचने मे मद्‌दगार साबित हो सकती है। यह टास्कफोर्स देश में चलने वाले तमाम चैनलों के लिये कन्टेन्ट कोड और निगरानी समिति बनाये जाने के लिये भी विचार करेगी। सरकार ने इसका मुखिया एक सरकारी अधिकारी को बनाया है लेकिन कई चैनलों के प्रतिनिधियों को भी इसमें शामिल किया गया है। निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया के लिये गठित यह टास्क फोर्स सरकार द्वारा उठाया गया स्वागत योग्य कदम है बशर्ते यह ध्यान में रखा जाए कि इसकी आड़ में सरकारी हित साधने व मीडिया को बंधक बनाने के प्रयास न हों। आशा है कि यह टास्क फोर्स मीडिया का भविष्य न तय करके भविष्य का मीडिया निर्माण में अपना अहम योगदान देगी।