विसर्जन के दौरान नम हुई श्रद्धालुओं की आँखें
नौ दिन तक मां की जय जयकार से गूंजने वाले दुर्गा पंडाल प्रतिमा विसर्जन के साथ ही सूने पड़ गए। श्रध्दालुओं ने परंपरागत तरीके से मां को विदाई दी। देवी स्थलों पर स्थापित मां की प्रतिमा को जयघोष के साथ नदी तक ले जाकर विसर्जन किया गया। जुलूस के साथ महिलाओं की टोली, जसगान करती हुई चल रही थी। महिलाओं ने सिर पर कलश जंवारा धारण कर मां को विदाई दी।
राजधानी में कल सुबह से ही दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन का सिलसिला शुरू हो गया था, विसर्जन खारून नदी सहित शहर के विभिन्न तालाबों में किया गया। छोटी बड़ी सभी दुर्गोत्सव समितियों ने रविवार को प्रतिमाओं का विसर्जन महादेव घाट में किया। आयोजन स्थलों से माता के जयघोष के साथ प्रतिमाएं उठाई गई, ढोलक और मंजीरे की धुन पर मां के जसगीत गाती महिलाओं की टोली को देखने के लिए लोगों की अच्छी खासी भीड़ जुटी। सामने युवाओं की टोलियां भी थिरकती हुई चली साथ ही चौराहों पर जमकर आतिशबाजी की गई। कुछ दुर्गोत्सव समितियों ने प्रतिमा विसर्जन अपने निकट के तालाबों में ही कर दिया, बंधवा तालाब, महाराजबंद तालाब, बूढ़ा तालाब सहित कई तालाबों में विसर्जन किया गया। इससे पहले कालीबाड़ी स्थित बंगाली दुर्गोत्सव समिति द्वारा स्थापित प्रतिमा के समक्ष सुबह महादशमी की पूजा-अर्चना की गई, साथ ही महिलाओं ने दोपहर को मातृवरण व सिंदूर निवेदन किया, शाम को माता की शोभायात्रा निकाली गई जो कि विभिन्न मार्गों से होती हुई वापस मंदिर परिसर पहुंची। बढ़ईपारा में भी जंवारा कलश की शोभायात्रा निकाली गई। भक्त मान्यतानुसार शरीर में सांग और बाना धारण कर नंगे पांव शोभायात्रा में शामिल हुए। महिलाएं सफेद रंग की लाल किनारे वाली साड़ियां पहने जंवारा उठाए हुए चली।
जस गीतों के साथ भक्त थिरकते रहे। शोभायात्रा बढ़ईपारा से तात्यापारा होते हुए कंकाली तालाब पहुंची। वहीं रीति-रिवाज के अनुसार जंवारा कलश का विसर्जन किया गया। सांग और बाना भी शरीर से निकाले गए। शहर में कई स्थानों पर भक्तों ने भव्य जुलूस निकाला। जंवारा विसर्जन से पहले श्रध्दालुओं ने नौ दिनों तक स्थापित रहे। कलशों का ज्योति विसर्जन किया था। प्रतिमा विसर्जन का सिलसिला आज भी जारी रहा और श्रध्दालु पूरे जोश के साथ जुलूस में शामिल हुए।
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