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Sunday, November 14, 2010

हाथी समस्या: जस की तस


छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों का आतंक

छत्तीसगढ़ में हाथी आतंक और तबाही का पर्याय बन चुके हैं। पिछले दो दशकों के दौरान हाथियों ने राज्य में 120 से ज्यादा लोगों की जान ली है और करोड़ों की फसल को तहस-नहस कर डाला है। लेकिन पिछले एक माह से घटनाएं तो बढ़ी ही हैं, हाथियों के झुण्ड राज्य के नए इलाकों को भी अपनी चपेट मे ले रहे हैं। एक तरफ जंगली हाथी राज्य में जन-धन की हानि करते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकारें नित नई योजना बनाकर समस्या सुलझाने का प्रयास करती रही हैं, जमीनी सच्चाई यह है कि अभी तक कोई भी सरकारी कोशिश पीड़ितों को राहत नहीं दिला पायी है। जहां एक ओर सरकार मुआवजा बांटकर अपनेर् कत्तव्य की इतिश्री कर रही हैं वहीं दूसरी ओर लोग भय और आतंक के साये में रतजगा करने को मजबूर हैं।

छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों की समस्या मुख्यत: राज्य के उत्तरी और उत्तर पूर्वी इलाकों में है, यह इलाका झारखण्ड और उड़ीसा की सीमा से लगा हुआ है, जहां से हाथी राज्य में प्रवेश करते हैं, यह विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र है। हाथी समस्या के मूल में दो कारण हैं पहला यह कि पड़ोसी राज्यों में अत्यधिक बढ़ता खनन और वनों का दोहन जिससे जंगलों में रहने वाले हाथी अपने घरों (जंगल) से बेघर हो रहे हैं और वनों से आच्छादित छत्तीसगढ़ की ओर अपना रूख कर रहे हैं, दूसरा कारण यह है कि राज्य के इन ग्रामीण क्षेत्र में महुआ से शराब बनाई जाती है, महुआ की महक से हाथी बस्तियों की ओर खिंचे चले आते हैं और मादकता के खुमार में हिंसक हो जाते हैं।
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय पहली बार 1993 में कर्नाटक से आये विशेषज्ञों की सहायता से ''ऑपरेशन जम्बो'' में 14 हाथियों को पकड़ा गया, जिन्हें बाद में म.प्र. और छत्तीसगढ़ के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों में रखकर पर्यटन की दृष्टि से उपयोग में लाया गया। वर्ष 2000 में पड़ोसी राज्यों झारखंड और उड़ीसा से दोबारा हाथियों का प्रवेश प्रारंभ हो गया जिसकी संख्या बाद के वर्षों में बढ़ती ही गई। 2005 के अंत तक राज्य में जंगली हाथियों की संख्या 123 तक पहुंच गई, समस्या से राज्य के 450 से अधिक गांव प्रभावित हैं।
यूं तो इस समस्या के समाधान के लिए पूर्व में कई बार शासन स्तर पर प्रयास हुए, लेकिन राज्य निर्माण के बाद वर्ष 2003 में जब प्रदेश में अजीत जोगी की सरकार थी तब वन विभाग ने हाथी विशेषज्ञ पार्वती बरूआ को बुलाया था, जिन्हें असम में कई जंगली हाथियों को काबू में करने का अनुभव था। उनके निर्देशन में 'घेरा डालो अभियान' शुरू किया गया जिसमें एक हाथी की मृत्यु हो गई। उन दिनों कुल 32 हाथी अलग-अलग दल बनाकर उत्पात मचा रहे थे। हाथी की मौत के बाद यह मामला विधानसभा में भी गूंजा। इसके बाद वर्ष 2005 में भाजपा शासनकाल के समय मुख्य, वन्य प्राणी अभिरक्षक ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन चलने वाली हाथी परियोजना में छत्तीसगढ़ को भी शामिल करने के लिए परियोजना निदेशक को पत्र लिखा। इसके तहत केंद्र राज्यों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता मुहैया कराता है, यह परियोजना पूर्व से 13 राज्यों में लागू थी। पत्र का जवाब देते हुए परियोजना निदेशक ने राज्य को प्रस्ताव में आवश्यक सुधार कर दोबारा भेजने का निर्देश दिया। राज्य की ओर से भारत सरकार को दोबारा प्रस्ताव भेजकर तीन हाथी रिजर्व को विकसित करने की सहायता मांगी गई, तीन हाथी रिजर्वस में बादलखोल, तमोर पिंगला और लेमरू हाथी रिजर्व शामिल है। हालांकि बाद में भारत सरकार ने राज्य को हाथी परियोजना में शामिल कर लिया, लेकिन जैसा कि प्रदेश शासन ने सोचा था कि इससे समस्या सुलझ जाएगी वैसा नहीं हुआ, समस्या सुलझने की बजाय और भी उलझ गई है। राज्य सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि वह समाधान के प्रयास किस दिशा में करें। शासन द्वारा इस दिशा में कई विशेषज्ञों का भी सहयोग लिया गया। वर्ष 2006 में अर्थ मैटर्स फाउन्डेशन के प्रमुख माईक पाण्डेय ने हाथियों की समस्या से निपटने के लिए मुख्यमंत्री के समक्ष तीन सूत्रीय प्रस्ताव रखा जिसके तहत हाथी रिजर्व विकसित करना जहां पर शोध और पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा। दूसरा प्रस्ताव वृध्द एवं थके या बीमार हाथियों की शरणस्थली के तौर पर हाथी गांव विकसित करना जिसमें हाथी और महावत एक साथ रहेंगे, तीसरा और आखिरी प्रस्ताव यह था कि समस्या पैदा करने वाले हाथियों को पकड़कर सुदूर भेज दिया जाए।
पिछले एक माह से सरगुजा संभाग के कई इलाकों में जंगली हाथियों द्वारा कहर बरपाने की घटनाओं में तेजी आयी है, हाथियों के कई दलों ने गांवों में अचानक हमला कर जन-धन को भारी क्षति पहुंचायी है। रामानुजनगर में एक बच्ची को पटककर मारे जाने की घटना हो या लखनपुर क्षेत्र में कई एकड़ फसल को तहस-नहस करना, समस्या प्रभावित सभी जिलों में लोग भय और आतंक के बीच दिन काटने को मजबूर हैं। वहीं सरकारी कवायदों का फौरी लाभ फिलहाल पीड़ितों को नहीं मिला है और न ही निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना नजर आती है। इस बीच खबर आई है कि वन मंत्री विक्रम उसेण्डी कर्नाटक के दौरे पर जाने वाले हैं, जहां वह हाथी समस्या के स्थायी समाधान के लिए अध्ययन करेंगे।

हाथियों से जानमाल के नुकसान से बचाव के लिए जंगलों में उनके लिए आहार शृंखला का विकास सबसे अहम् है, जिस पर काम चल रहा है। यह प्रोजेक्ट एलीफैन्ट का ही एक हिस्सा है। आहार के लिए हाथी जंगलों से बाहर निकल रहे हैं। यदि उन्हें पूरा आहार मिल जाए तो वे जंगलों से बाहर नहीं आएंगे। धान की फसल तैयार होने के समय उनका आबाद क्षेत्रों में प्रवेश की घटनाएं आहार के लिए ही बढ़ जाती है। हाथियों के आबाद क्षेत्रों में प्रवेश से रोकने के लिए हल्ला पार्टियों का गठन किया गया है और सुरक्षा एहतियात के प्रति लोगों को जागरूक करने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। सरगुजा के सीएफ वाइल्ड लाइफ सेट्टी पनवर ने बताया कि पूरे सरगुजा सर्कल में जिसमें सरगुजा, कोरिया और जशपुर जिले आते हैं, चार दलों में 80 हाथी विचरण कर रहे हैं। आम तौर पर हाथियों के आने-जाने को रास्ता निश्चित होता है
इसलिए ऐसे रास्तों को चिन्हित कर जानमाल के नुकसान से बचाव की योजनाएं तैयार की गई हैं। ऐसे मार्गों पर हल्ला पार्टियों का गठन किया गया है और लोगों को सुरक्षा एहतियात के प्रति जागरूक करने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हाथियों की समस्या के स्थायी हल के लिए जंगलों में उनके लिए आहार शृंखला के विकास की जरूरत है। हाथी जंगलों में रहना पसंद करते हैं। यदि उन्हें पर्याप्त आहार जंगल में ही मिल जाएं तो वे बाहर गांवों का रूख नहीं करेंगे। इस पर काम चल रहा है, जो प्रोजेक्ट एलीफैंट का ही एक हिस्सा है। इसके परिणाम आने वाले वर्षों में दिखाई देंगे। आहार शृंखला के विकास का यह कार्यक्रम दस वर्षों में पूरा होगा। हल्ला पार्टी के अलावा हर डिवीजन में ट्रेकर पार्टी भी बनाई गई है, जो हाथियों के दल पर नजर रखती है और आबाद क्षेत्र में घुसने की संभावना पर लोगों को सतर्क करने तथा उसकी सूचना मुख्यालय में देने का काम कर रही है। उन्होंने बताया कि ये सारा काम योजनाबध्द ढंग से चल रहा है और इनसे जानमाल के नुकसान को काम करने में मदद मिली है।