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Tuesday, January 31, 2012

Thursday, September 29, 2011

मायावती की '' चिट्ठी पोलिटिक्स ''

मायावती की '' चिट्ठी पोलिटिक्स ''
अगर किसी राज्य की तरफ से केंद्र सरकार को भेजे जाने वाली चिट्ठियों की गिनती हो तो उसमें सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश का नाम होगा. मुख्यमंत्री मायावती भले ही अपने असल काम के इतर सैंडल और खाने पीने के लिए चर्चा में रही हों लेकिन वह लगभग अपने पदभार ग्रहण करने के समय से ही 'चिट्ठी पालिटिक्स' में खासी सक्रिय रही हैं. वह राज्य के लगभग हर कार्य के लिए केंद्र की जिम्मेदारी मानती हैं और सिर्फ चिट्ठी लिखकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं. केंद्र पर इन चिट्ठियों का कुछ असर होता तो कभी नहीं दिखता लेकिन मायावती अपनी सरकार के लचर प्रदर्शन को बचाने के लिए इन चिट्ठियों का इस्तेमाल ज़रूर करती हैं. कहते हैं मुख्यमंत्री अच्छी लेखिका हैं शायद यही वजह है की वह चिट्ठी के मोर्चे पर राज्य को नयी दिशा दे रही हैं. मुख्यमंत्री अब तक जिन मुद्दों के लिए सरकार को चिट्ठियाँ लिख चुकी हैं उनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-

प्रदेश को विशेष पैकेज देने की मांग
अयोध्या के लिए वृहद स्तर पर अर्धसैनिक बालों की मांग के सम्बन्ध में
स्वर्ण, मुसलमान सहित जाट आरक्षण की मांग
मोदी उपवास के दौरान पीएम को दनादन चिट्ठियाँ
बुंदेलखंड, पूर्वांचल राज्य बनाने के सम्बन्ध में मांग
किसानों का क़र्ज़ माफ़ करने हेतु
दिनकरण महाभियोग मामले में पीएम को चिट्ठी

लेकिन इन सब के बावजूद मायावती को निराशा ही हाथ लगी. खतों की इस खता के बावजूद उनके चेहरे पर कोई शिकन का ना होना यह बताता है की यह महज उनकी वोट बैंक के लिए चिट्ठी पालिटिक्स ही है. मायावती जानती हैं की उन्होंने अपने इस कार्यकाल में कुछ विशेष नहीं किया है इसलिए वह आगामी विधान सभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इन दिनों तमाम अखबारों व चैनलों में विज्ञापन दिए पड़ी हैं, हाल ही में एक विज्ञापन को देखकर मैं दंग रह गया जिसमें ग्रेटर नोएडा में आयोजित होने वाली एफ1 कार रेस को मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की उपलब्धियों में गिनाया है. मुझे नहीं मालुम कि विज्ञापन में दिखाई गयी चमचमाती सडकें और फ्लाई ओवर कि तस्वीरों का 'जुगाड़' कहाँ से किया गया लेकिन ये तो ज़मीनी सच है ही कि ये तस्वीर फिलहाल प्रदेश में कहीं नहीं दिखती वो बात अलग है कि ये मायावती के आगामी ड्रीम प्रोजेक्ट हों, लेकिन अगर मायावती यूँ ही चिट्ठी राजनीति में मशगूल रहीं तो उनके सत्ता में वापसी कि संभावना बेहद कम है और उनके ये प्रोजेक्ट सिर्फ सपनों में ही आयेंगे.

Thursday, April 7, 2011

Sunday, December 26, 2010

लालगंगा की राह में रोड डिवाईडर रोड़ा


राजधानी में मॉल कल्चर की शुरुआत करने वाला लालगंगा शॉपिंग मॉल इन दिनों ग्राहकों की बांट जोहता नजर आ रहा है। हालांकि ग्राउंड फ्लोर और बेसमेंट में ग्राहक पर्याप्त संख्या में पहुंचते हैं, लेकिन बाकी तलों में स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। वर्ष 2003 में जब यह बनकर तैयार हुआ, तब यह शहर का इकलौता मॉल था और यहां आने वाले ग्राहकों की संख्या में बीतते वक्त के साथ बढ़ोतरी हुई, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें कमी आई है। लालगंगा के ठीक सामने जीई रोड पर डिवाइडर होने के कारण वाहनों को घड़ी चौक या राज टाकीज से घुमाकर लाना पड़ता है, जिस कारण जो लोग यहां आना चाहते हैं वो भी असुविधाजनक होने के कारण आने से बचते हैं। दूसरा, यहां आने वालों के लिए वाहन पार्किंग हमेशा से ही समस्या रही है। जरूरत के हिसाब से पार्किंग न होने के कारण भी समस्या बढ़ती जा रही है। हालांकि बेसमेंट पार्किंग और मॉल के बाहर भी पार्किंग सीमा दी गई ह,ै लेकिन वह अपर्याप्त है। इस संबंध में लालगंगा बिल्डर्स के ललित पटवा बताते हैं कि हमें व्यावहारिक नजरिए से सोचने की जरूरत है। पार्किंग के बारे में उनका मानना है कि इसके लिए जितना कुछ कर सकते हैं, वो किया जाता है। रोड डिवाइडर पर भी उनका यही मानना है कि यातायात व्यवस्था के सुगम परिचालन हेतु कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पडता है।
शॉपिंग मॉल के तौर पर अपनी शुरुआत करने वाला लालगंगा मॉल आज शॉपिंग सेन्टर की राह पर निकल गया है। आज शहर में कई नए मॉल खुल गए हैं जो कि अधिक सर्वसुविधायुक्त हैं। इसके बावजूद लालगंगा का महत्व कम नहीं हुआ है। यहां इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे कम्प्यूटर, मोबाइल आदि का बाजार तेजी से विकसित हो रहा है, साथ ही दो सौ से अधिक दुकानें व कार्यालय भी यहां हैं जिनमें कई बैंक व ऑफिस शामिल है। मोबाइल विक्रेता हर्ष बताते हैं कि वह यहां पिछले छह वर्षों से दुकान चला रहे हैं और उनके ग्राहक बंध गए हैं।
वह कहते हैं कि अन्य काम्पलेक्स की तुलना में यहां की स्थिति कहीं बेहतर है, साफ-सफाई की भी स्थिति सुधरी है। सुरक्षा हेतु गार्डों की भी व्यवस्था है। प्रापर्टी डीलिंग से जुड़े एक व्यवसायी ने बताया कि कुछ समस्याओं के लिए जागरूकता की कमी व कुछ के लिए सीमित स्थान समस्या है। हालांकि उनका मानना है कि स्थिति पहले से काफी बेहतर है।

कचरे से फैलती है दुर्गंध
लालगंगा मॉल के बगल से मंत्रालय जाने वाली सड़क में कचरा फेंकने से वहां गंदगी फैलती है, जिससे मॉल की सुन्दरता पर तो बट्टा लगता ही है, आसपास के दुकानदारों को भी असुविधा होती है। इस संबंध में लालगंगा प्रबंधन का कहना है कि सड़क किनारे ठेला लगाने वाले कचरा वहां फेंक देते हैं, निगम द्वारा वहां कई बार सफाई कराने के बावजूद स्थिति दोबारा वैसी हो जाती है। ललित पटवा कहते हैं कि कई बार ठेलों व गंदगी फैलाने वालों को मना किया गया, लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं होता। मॉल के उस लाइन में पड़ने वाले दुकानदारों और कचरा फैलाने वालों के बीच कई बार विवाद की स्थिति भी बन जाती है।

Friday, December 17, 2010

भामाशाह को नहीं मिलता पुरस्कार

चालीस साल रिक्शा चला बनवाई धर्मशाला

आज शहरों में जब धर्मशालाओं को तोड़कर आर्थिक लाभ की दृष्टि से सर्वसुविधायुक्त काम्प्लेक्स तैयार किए जा रहे हों और सेवा-परोपकार का लाभ कमाने की होड़ में कोई स्थान नहीं रह गया है। ऐसे दौर में अपनी जीवन भर की पूंजी इकट्ठा कर धर्मशाला बनवाने वाले संत सदाराम बांधे जैसे लोग बहुत ही मुश्किल से मिलते हैं। इस 75 वर्षीय वृध्द ने उम्र भर रिक्शा चला एक-एक पैसा जोड़कर जो काम कर दिखाया, उसे करने में आज बड़े-बड़े धन्नासेठ बचते हैं। लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि ऐसी शख्सियत को आज अपनी वृध्दावस्था पेंशन और गरीबी रेखा राशन कार्ड बनवाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। ऐसे दानवीर शासन के भामाशाह सम्मान के भी पात्र नहीं समझे जाते।
संत सदाराम बांधे ने सड़कों पर चालीस साल रिक्शा चलाकर तीन लाख रुपए जोड़े और दो लाख में अपना मकान बेचकर पांच लाख रुपए की लागत से गिरौदपुरी में तीर्थयात्रियों व दर्शनार्थियों की नि:शुल्क सेवा के लिए दस कमरों की धर्मशाला का पिछले वर्ष निर्माण करवाया।
सतनामी समाज की गुरूमाता से प्रभावित होकर सदाराम ने अपनी पत्नी की याद में असहाय लोगों के लिए सिर छिपाने की जगह तैयार की और इसे सतनाम धर्मशाला नाम देकर गुरूमाता को समर्पित किया। पांच साल पहले अपनी पत्नी के निधन के बाद जीवन गुजारने के लिए उसके पास आय का कोई साधन नहीं है। सदाराम का नाम उनके दीर्घावधि सेवा, कार्यों और अभूतपूर्व योगदान के लिए गुरूघासीदास पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया जा चुका है। यह पुरस्कार उन्हें नहीं मिला। वैसे तो वे दानवीर भामाशाह के नाम पर दिए जाने वाले राजकीय सम्मान के स्वाभाविक हकदार हैं, लेकिन यह पुरस्कार भी उन्हें नसीब नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि हर वर्ष अमीरों को मिलने वाला यह पुरस्कार के लिए आज के ऐसे भामाशाह योग्य नहीं हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में सदाराम जैसी कई हस्तियां हैं जिन्होंने जीवन में संघर्ष कर जो कुछ भी कमाया उसे सामाजिक काम के लिए दान में दे दिया रायपुर के नगरमाता बिन्नीबाई सोनकर उनमें से एक हैं।

Thursday, December 16, 2010

समस्याओं से घिरा जयराम काम्पलेक्स


  • देखरेख करने वाला कोई नहीं
  • पार्किंग, सुरक्षा से जुडी कई दिक्कतें
रायपुर के मुख्य केन्द्र जयस्तंभ चौक पर स्थित शहर का पहला शॉपिंग सेंटर जयराम काम्पलेक्स चौतरफा समस्याओं से घिरा हुआ है। समस्याएं भी ऐसी हैं कि उनका निकट भविष्य में समाधान होने की संभावना न के बराबर है। इलेक्ट्रॉनिक बाजार के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले इस काम्प्लेक्स में न तो पार्किंग की कोई मुकम्मल व्यवस्था है न ही सुरक्षा के कोई इंतजाम, पूर्व में यहां चोरी की कई बड़ी घटनाएं घट चुकी हैं। दो सौ से अधिक दुकानों वाले इस काम्पलेक्स में पार्किंग की व्यवस्था न के बराबर है, क्योंकि दोनों तरफ मुख्य सड़क होने के कारण कुछ गाड़ियां ही एक लाइन पर खड़ी हो पाती हैं, जबकि दूसरी तरफ जीई रोड की ओर इतनी की भी गुंजाइश नहीं है। हालांकि बेसमेंट पार्किंग बनी है लेकिन वह सिर्फ शो-पीस साबित हो रही है, क्योंकि यहां भी दुकानें निकाल दिए जाने के कारण सीमित स्थान ही रह गया है। टूटी नालियों व अव्यवस्थित ड्रेनेज का पानी बेसमेंट में भर जाने के कारण इस पार्किंग का प्रयोग न के बराबर होता है। केवल व्यापारी धीरज जादवानी की इस काम्पलेक्स में सन् 1994 से ही दुकान है, उन्होंने बताया कि यहां देखरेख करने वाला कोई नहीं है इसलिए स्वयं ही सब इंतजाम करना पड़ता है।
सुरक्षा से जुड़े कई पेंच भी इस काम्पलेक्स में उलझे हुए हैं, हालांकि कुछ दुकानदारों ने निजी गार्ड को लगा रखा है, लेकिन जटिल स्थिति तब बनती है जब काम्पलेक्स का एक हिस्सा रात के समय ऐसे ही पड़ा रहता है। पूर्व में कई बार यहां के व्यापारियों ने आपसी सहमति से पूरे काम्पलेक्स की सुरक्षा के लिए कवायद की थी, लेकिन आपसी मतभेदों के चलते यह प्रयोग ज्यादा दिन नहीं चल पाया। दिनोंदिन बदहाल होती काम्पलेक्स की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कॉपियर्स विक्रेता राकेश सुंदरानी कहते हैं कि यहां की ज्यादातर समस्याओं के लिए इसके मालिक, निगम के लालची अधिकारी और बेतरतीब बढ़ता यातायात जिम्मेदार है, जिसने बीतते समय के साथ विभिन्न समस्याएं पैदा कीं, जिसका खामियाजा यहां आने वाले ग्राहकों और दुकानदारों को भुगतना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि अगर समय रहते यहां की समस्याओं को सुलझाने के लिए पहल नहीं की गई तो यहां की व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती है क्योंकि काम्पलेक्स शहर के बीचोबीच स्थित है और ट्रैफिक का दबाव तेजी से बढ़ रहा है।

Monday, December 13, 2010

ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण हेतु छत्तीसगढ़ में कानून नहीं


  • न्यायालय भवन तोड़ने का विरोध तेज़
  • राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनाने की मांग

राज्य की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए प्रदेश में कोई कानून न होने का खामियाजा ऐतिहासिक इमारतों को ज़मींदोज़ होकर भुगतान पड़ रहा है। ब्रिटिश शासनकाल के समय सन् 1880 में निर्मित पुराना न्यायालय भवन की मूल संरचना के साथ छेड़छाड़ कर नए निर्माण के प्रयास होने लगे हैं, जिसका भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) व इतिहासकारों ने विरोध किया है। इस संबंध में राज्य सरकार से मांग की गई है कि वह पुरातात्विक महत्व की इमारतों के संरक्षण के लिए उक्त भवन को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनवाए।
शहर के इतिहासविदों ने कई बार इन्टैक के माध्यम से पुरानी इमारतों के संरक्षण के लिए राज्य में कानून बनाने की मांग मुख्यमंत्री व लोक निर्माण मंत्री से की है। इतिहासकार एलएस निगम न्यायालय भवन को तोड़े जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इतिहास के उदाहरणों को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे शहर की सांस्कृतिक विरासत का पता चलता है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक महत्व के निर्माण की मूल संरचना में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। प्रदेश में जब तक इस संबंध में कानून का स्पष्ट प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक इसे केन्द्र सरकार के अधीन पुरातत्व विभाग को सौंपने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। नागरिक संघर्ष समिति के अध्यक्ष विश्वजीत मित्रा का कहना है कि वर्तमान में न्यायालय परिसर में पार्किंग की व्यवस्था व्यापक रूप से नहीं है एवं इसके बाहर ट्रैफिक का दबाव भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, जिससे आने वाले वर्षों में गोल बाजार, मालवीय रोड जैसे भीड़भाड़ की स्थिति निर्मित होगी, इसलिए उक्त परिसर में नया निर्माण करना सरकारी धन की बर्बादी तो है ही, प्राचीन धरोहर के साथ भी छेड़छाड़ है। अत: नए स्थल का चयन कर सम्पूर्ण न्यायालय भवन को अन्यत्र स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
श्री मित्रा ने यह भी बताया कि जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के अंतर्गत भी पुरानी इमारतों की देखरेख, संरक्षण, रंग-रोगन, मरम्मत आदि की व्यवस्था है, लेकिन राज्य में स्पष्ट कानून न होने के कारण एक के बाद एक ऐतिहासिक महत्व की इमारतें नष्ट होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले ही तेलीबांधा स्थित मौली माता मंदिर को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर ज़मींदोज़ कर दिया गया था।