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Sunday, December 26, 2010

लालगंगा की राह में रोड डिवाईडर रोड़ा


राजधानी में मॉल कल्चर की शुरुआत करने वाला लालगंगा शॉपिंग मॉल इन दिनों ग्राहकों की बांट जोहता नजर आ रहा है। हालांकि ग्राउंड फ्लोर और बेसमेंट में ग्राहक पर्याप्त संख्या में पहुंचते हैं, लेकिन बाकी तलों में स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। वर्ष 2003 में जब यह बनकर तैयार हुआ, तब यह शहर का इकलौता मॉल था और यहां आने वाले ग्राहकों की संख्या में बीतते वक्त के साथ बढ़ोतरी हुई, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें कमी आई है। लालगंगा के ठीक सामने जीई रोड पर डिवाइडर होने के कारण वाहनों को घड़ी चौक या राज टाकीज से घुमाकर लाना पड़ता है, जिस कारण जो लोग यहां आना चाहते हैं वो भी असुविधाजनक होने के कारण आने से बचते हैं। दूसरा, यहां आने वालों के लिए वाहन पार्किंग हमेशा से ही समस्या रही है। जरूरत के हिसाब से पार्किंग न होने के कारण भी समस्या बढ़ती जा रही है। हालांकि बेसमेंट पार्किंग और मॉल के बाहर भी पार्किंग सीमा दी गई ह,ै लेकिन वह अपर्याप्त है। इस संबंध में लालगंगा बिल्डर्स के ललित पटवा बताते हैं कि हमें व्यावहारिक नजरिए से सोचने की जरूरत है। पार्किंग के बारे में उनका मानना है कि इसके लिए जितना कुछ कर सकते हैं, वो किया जाता है। रोड डिवाइडर पर भी उनका यही मानना है कि यातायात व्यवस्था के सुगम परिचालन हेतु कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पडता है।
शॉपिंग मॉल के तौर पर अपनी शुरुआत करने वाला लालगंगा मॉल आज शॉपिंग सेन्टर की राह पर निकल गया है। आज शहर में कई नए मॉल खुल गए हैं जो कि अधिक सर्वसुविधायुक्त हैं। इसके बावजूद लालगंगा का महत्व कम नहीं हुआ है। यहां इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे कम्प्यूटर, मोबाइल आदि का बाजार तेजी से विकसित हो रहा है, साथ ही दो सौ से अधिक दुकानें व कार्यालय भी यहां हैं जिनमें कई बैंक व ऑफिस शामिल है। मोबाइल विक्रेता हर्ष बताते हैं कि वह यहां पिछले छह वर्षों से दुकान चला रहे हैं और उनके ग्राहक बंध गए हैं।
वह कहते हैं कि अन्य काम्पलेक्स की तुलना में यहां की स्थिति कहीं बेहतर है, साफ-सफाई की भी स्थिति सुधरी है। सुरक्षा हेतु गार्डों की भी व्यवस्था है। प्रापर्टी डीलिंग से जुड़े एक व्यवसायी ने बताया कि कुछ समस्याओं के लिए जागरूकता की कमी व कुछ के लिए सीमित स्थान समस्या है। हालांकि उनका मानना है कि स्थिति पहले से काफी बेहतर है।

कचरे से फैलती है दुर्गंध
लालगंगा मॉल के बगल से मंत्रालय जाने वाली सड़क में कचरा फेंकने से वहां गंदगी फैलती है, जिससे मॉल की सुन्दरता पर तो बट्टा लगता ही है, आसपास के दुकानदारों को भी असुविधा होती है। इस संबंध में लालगंगा प्रबंधन का कहना है कि सड़क किनारे ठेला लगाने वाले कचरा वहां फेंक देते हैं, निगम द्वारा वहां कई बार सफाई कराने के बावजूद स्थिति दोबारा वैसी हो जाती है। ललित पटवा कहते हैं कि कई बार ठेलों व गंदगी फैलाने वालों को मना किया गया, लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं होता। मॉल के उस लाइन में पड़ने वाले दुकानदारों और कचरा फैलाने वालों के बीच कई बार विवाद की स्थिति भी बन जाती है।

Friday, December 17, 2010

भामाशाह को नहीं मिलता पुरस्कार

चालीस साल रिक्शा चला बनवाई धर्मशाला

आज शहरों में जब धर्मशालाओं को तोड़कर आर्थिक लाभ की दृष्टि से सर्वसुविधायुक्त काम्प्लेक्स तैयार किए जा रहे हों और सेवा-परोपकार का लाभ कमाने की होड़ में कोई स्थान नहीं रह गया है। ऐसे दौर में अपनी जीवन भर की पूंजी इकट्ठा कर धर्मशाला बनवाने वाले संत सदाराम बांधे जैसे लोग बहुत ही मुश्किल से मिलते हैं। इस 75 वर्षीय वृध्द ने उम्र भर रिक्शा चला एक-एक पैसा जोड़कर जो काम कर दिखाया, उसे करने में आज बड़े-बड़े धन्नासेठ बचते हैं। लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि ऐसी शख्सियत को आज अपनी वृध्दावस्था पेंशन और गरीबी रेखा राशन कार्ड बनवाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। ऐसे दानवीर शासन के भामाशाह सम्मान के भी पात्र नहीं समझे जाते।
संत सदाराम बांधे ने सड़कों पर चालीस साल रिक्शा चलाकर तीन लाख रुपए जोड़े और दो लाख में अपना मकान बेचकर पांच लाख रुपए की लागत से गिरौदपुरी में तीर्थयात्रियों व दर्शनार्थियों की नि:शुल्क सेवा के लिए दस कमरों की धर्मशाला का पिछले वर्ष निर्माण करवाया।
सतनामी समाज की गुरूमाता से प्रभावित होकर सदाराम ने अपनी पत्नी की याद में असहाय लोगों के लिए सिर छिपाने की जगह तैयार की और इसे सतनाम धर्मशाला नाम देकर गुरूमाता को समर्पित किया। पांच साल पहले अपनी पत्नी के निधन के बाद जीवन गुजारने के लिए उसके पास आय का कोई साधन नहीं है। सदाराम का नाम उनके दीर्घावधि सेवा, कार्यों और अभूतपूर्व योगदान के लिए गुरूघासीदास पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया जा चुका है। यह पुरस्कार उन्हें नहीं मिला। वैसे तो वे दानवीर भामाशाह के नाम पर दिए जाने वाले राजकीय सम्मान के स्वाभाविक हकदार हैं, लेकिन यह पुरस्कार भी उन्हें नसीब नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि हर वर्ष अमीरों को मिलने वाला यह पुरस्कार के लिए आज के ऐसे भामाशाह योग्य नहीं हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में सदाराम जैसी कई हस्तियां हैं जिन्होंने जीवन में संघर्ष कर जो कुछ भी कमाया उसे सामाजिक काम के लिए दान में दे दिया रायपुर के नगरमाता बिन्नीबाई सोनकर उनमें से एक हैं।

Thursday, December 16, 2010

समस्याओं से घिरा जयराम काम्पलेक्स


  • देखरेख करने वाला कोई नहीं
  • पार्किंग, सुरक्षा से जुडी कई दिक्कतें
रायपुर के मुख्य केन्द्र जयस्तंभ चौक पर स्थित शहर का पहला शॉपिंग सेंटर जयराम काम्पलेक्स चौतरफा समस्याओं से घिरा हुआ है। समस्याएं भी ऐसी हैं कि उनका निकट भविष्य में समाधान होने की संभावना न के बराबर है। इलेक्ट्रॉनिक बाजार के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले इस काम्प्लेक्स में न तो पार्किंग की कोई मुकम्मल व्यवस्था है न ही सुरक्षा के कोई इंतजाम, पूर्व में यहां चोरी की कई बड़ी घटनाएं घट चुकी हैं। दो सौ से अधिक दुकानों वाले इस काम्पलेक्स में पार्किंग की व्यवस्था न के बराबर है, क्योंकि दोनों तरफ मुख्य सड़क होने के कारण कुछ गाड़ियां ही एक लाइन पर खड़ी हो पाती हैं, जबकि दूसरी तरफ जीई रोड की ओर इतनी की भी गुंजाइश नहीं है। हालांकि बेसमेंट पार्किंग बनी है लेकिन वह सिर्फ शो-पीस साबित हो रही है, क्योंकि यहां भी दुकानें निकाल दिए जाने के कारण सीमित स्थान ही रह गया है। टूटी नालियों व अव्यवस्थित ड्रेनेज का पानी बेसमेंट में भर जाने के कारण इस पार्किंग का प्रयोग न के बराबर होता है। केवल व्यापारी धीरज जादवानी की इस काम्पलेक्स में सन् 1994 से ही दुकान है, उन्होंने बताया कि यहां देखरेख करने वाला कोई नहीं है इसलिए स्वयं ही सब इंतजाम करना पड़ता है।
सुरक्षा से जुड़े कई पेंच भी इस काम्पलेक्स में उलझे हुए हैं, हालांकि कुछ दुकानदारों ने निजी गार्ड को लगा रखा है, लेकिन जटिल स्थिति तब बनती है जब काम्पलेक्स का एक हिस्सा रात के समय ऐसे ही पड़ा रहता है। पूर्व में कई बार यहां के व्यापारियों ने आपसी सहमति से पूरे काम्पलेक्स की सुरक्षा के लिए कवायद की थी, लेकिन आपसी मतभेदों के चलते यह प्रयोग ज्यादा दिन नहीं चल पाया। दिनोंदिन बदहाल होती काम्पलेक्स की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कॉपियर्स विक्रेता राकेश सुंदरानी कहते हैं कि यहां की ज्यादातर समस्याओं के लिए इसके मालिक, निगम के लालची अधिकारी और बेतरतीब बढ़ता यातायात जिम्मेदार है, जिसने बीतते समय के साथ विभिन्न समस्याएं पैदा कीं, जिसका खामियाजा यहां आने वाले ग्राहकों और दुकानदारों को भुगतना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि अगर समय रहते यहां की समस्याओं को सुलझाने के लिए पहल नहीं की गई तो यहां की व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती है क्योंकि काम्पलेक्स शहर के बीचोबीच स्थित है और ट्रैफिक का दबाव तेजी से बढ़ रहा है।

Monday, December 13, 2010

ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण हेतु छत्तीसगढ़ में कानून नहीं


  • न्यायालय भवन तोड़ने का विरोध तेज़
  • राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनाने की मांग

राज्य की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए प्रदेश में कोई कानून न होने का खामियाजा ऐतिहासिक इमारतों को ज़मींदोज़ होकर भुगतान पड़ रहा है। ब्रिटिश शासनकाल के समय सन् 1880 में निर्मित पुराना न्यायालय भवन की मूल संरचना के साथ छेड़छाड़ कर नए निर्माण के प्रयास होने लगे हैं, जिसका भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) व इतिहासकारों ने विरोध किया है। इस संबंध में राज्य सरकार से मांग की गई है कि वह पुरातात्विक महत्व की इमारतों के संरक्षण के लिए उक्त भवन को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनवाए।
शहर के इतिहासविदों ने कई बार इन्टैक के माध्यम से पुरानी इमारतों के संरक्षण के लिए राज्य में कानून बनाने की मांग मुख्यमंत्री व लोक निर्माण मंत्री से की है। इतिहासकार एलएस निगम न्यायालय भवन को तोड़े जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इतिहास के उदाहरणों को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे शहर की सांस्कृतिक विरासत का पता चलता है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक महत्व के निर्माण की मूल संरचना में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। प्रदेश में जब तक इस संबंध में कानून का स्पष्ट प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक इसे केन्द्र सरकार के अधीन पुरातत्व विभाग को सौंपने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। नागरिक संघर्ष समिति के अध्यक्ष विश्वजीत मित्रा का कहना है कि वर्तमान में न्यायालय परिसर में पार्किंग की व्यवस्था व्यापक रूप से नहीं है एवं इसके बाहर ट्रैफिक का दबाव भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, जिससे आने वाले वर्षों में गोल बाजार, मालवीय रोड जैसे भीड़भाड़ की स्थिति निर्मित होगी, इसलिए उक्त परिसर में नया निर्माण करना सरकारी धन की बर्बादी तो है ही, प्राचीन धरोहर के साथ भी छेड़छाड़ है। अत: नए स्थल का चयन कर सम्पूर्ण न्यायालय भवन को अन्यत्र स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
श्री मित्रा ने यह भी बताया कि जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के अंतर्गत भी पुरानी इमारतों की देखरेख, संरक्षण, रंग-रोगन, मरम्मत आदि की व्यवस्था है, लेकिन राज्य में स्पष्ट कानून न होने के कारण एक के बाद एक ऐतिहासिक महत्व की इमारतें नष्ट होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले ही तेलीबांधा स्थित मौली माता मंदिर को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर ज़मींदोज़ कर दिया गया था।

Sunday, December 12, 2010

मोबाइल टॉवर सीलिंग से उपभोक्ता हलाकान


बोलने से बच रहीं मोबाइल कंपनियां
पहले भी चली थी सीलिंग कार्रवाई
मोबाइल कंपनियों और नगर निगम के बीच जारी रस्साकशी का खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतान पड़ रहा है। तीन दिन से अवैध मोबाइल टॉवरों के खिलाफ जारी कार्रवाई से कार्य कर रहे टॉवरों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि एक टॉवर से पांच हजार मोबाइल कनेक्शन जुड़े होते हैं, चिन्हित किए गए अवैध टावरों की संख्या 150 से अधिक होने के कारण स्थिति गंभीर बनी हुई है। इससे पहले फरवरी में भी निगम ने मोबाइल कंपनियों के अवैध टॉवरों के खिलाफ अभियान चलाया था। निर्धारित मानकों को अनदेखा कर कंपनियां कहीं भी अपने टॉवर लगा देती हैं, साथ ही सुरक्षा निर्देशों का भी ठीक से पालन नहीं किया जाता।
इस होड़ में प्रायवेट मोबाइल कंपनियां ही नहीं, बल्कि सरकारी कंपनी बीएसएनल ने भी आवश्यक दिशा-निर्देशों की धाियां उड़ायी है। आम उपभोक्ताओं को होने वाली परेशानी का हवाला देकर जब एक निजी मोबाइल कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने सीधी जानकारी देने से बचते हुए इस संबंध में अपने क्षेत्रीय कार्यालय से जानकारी मंगाने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। वहीं जानकारों का मानना है कि इस कार्रवाई से टेलीकॉम कंपनियों में हड़कम्प मचा हुआ है। स्थिति सामान्य होने में अभी कितना वक्त लगेगा, मोबाइल उपभोक्ताओं की दिक्कतें फिलहाल बढ़ गई हैं। संतोषी नगर निवासी संतोष गुप्ता ने बताया कि उनके इलाके में सिग्नल कभी-कभी बिल्कुल ही गायब हो जाता है, जिससे उनको बात करने में काफी दिक्कत हो रही है। ऐसी ही स्थिति बहुत से अन्य मोबाइल उपभोक्ताओं की भी है।



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Saturday, December 11, 2010

भारत को मिलेगा सबसे घातक बम


जल्दी ही भारतीय वायुसेना को दुनिया के सबसे घातक बमों में से एक क्लस्टर बम हासिल हो जाएंगे। अमरीकी प्रशासन के मुताबिक, उसने भारत को 512 सीबीयू-195 बमों की बिक्री के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है।

अमरीका की टैक्सट्रॉन सिस्टम्स कॉर्पोरेशन के साथ भारत का करीब 26 करोड़ डॉलर का रक्षा सौदा हुआ है। यह सौदा अमरीका के फॉरेन मिलिट्री सेल्स (एफएमएस) प्रोग्राम के तहत हुआ।

वर्ष 2003 में इराक युद्ध के दौरान क्लस्टर बमों की क्षमता का परीक्षण हो चुका है।

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय वायुसेना इन बमों का इस्तेमाल सुखोई एसयू-30 एमकेआई में कर सकती है। इन बमों की बिक्री के लिए भारत ने पहली बार 2008 में आग्रह किया था। भारत को इन बमों की बिक्री का समर्थन पेंटागन (अमरीकी रक्षा मुख्यालय) ने भी किया था। उसकी ओर से अमरीकी कांग्रेस को बताया गया था कि इन बमों से भारत की रक्षा क्षमता में वृद्धि होगी। युद्ध के दौरान जमीन पर बख्तरबंद वाहनों, टैकों आदि को भारत प्रभावी तरीके नष्ट कर सकता है।


आधे टन वजनी क्लस्टर बम
एक क्लस्टर बम का आधा टन तक होता है। इसका संचालन पूरी तरह कंप्यूटर से नियंत्रित होता है। इन बमों में सक्रिय लेजर सेंसर होते हैं। एक क्लस्टर बम से जमीन पर फिक्स या मूविंग कई लक्ष्यों को एक साथ भेदा जा सकता है। इन बमों के लिए जो वारहैड्स अमरीका भारत को दे रहा है, वे एक बार में 10 बम दाग सकते हैं। इनके वारहैड्स पर राडार लगे होते हैं जो सटीक लक्ष्य भेदने में मददगार होते हैं।

रक्षा परिवहन विमान 16 को मिलेगा
भारत को पहला स्टेट ऑफ द आर्ट सी-130 जे रक्षा परिवहन विमान 16 दिसंबर को मिल जाएगा। इस विमान की निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन की ओर से वाशिंगटन में जारी बयान में यह जानकारी दी गई। बयान के मुताबिक, पहले दो विमान 2011 की शुरुआत में, अगले दो गर्मियों की शुरुआत में और शेष दो विमान गर्मियों के अंत तक अगले साल भेज दिए जाएंगे।


Thursday, December 9, 2010

ई-बैंकिंग : लापरवाही पड़ रही भारी



रायपुर में ई बैंकिंग के जरिये डेढ़ लाख रुपये की ठगी के अहम् खुलासे के बाद बैंक ग्राहकों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गयी हैं. बैंकिंग सुविधाओं में सबसे अधिक प्रचलन डेबिट कार्ड का है, ज़रा सी भी लापरवाही से इसमें जोखिम की संभावना सबसे अधिक रहती है, इसे संभाल कर रखने की जिम्मेदारी उपयोगकर्ताओं की है. राजधानी के 120 से अधिक एटीएम में भी आप उच्च सुरक्षा नियमों का पालन करके अपनी मेहनत की कमाई को डूबने से बचा सकते हैं .

ई-बैंकिंग के जरिए धोखाधड़ी के अहम् खुलासे के बाद उन बैंक ग्राहकों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं, जो ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं। बैंकिंग सुविधाओं में सबसे ज्यादा प्रचलन एटीएम कार्ड का है, इसलिए जरा सी लापरवाही में इसमें जोखिम की सम्भावना अधिक रहती है। जहां एक ओर यह एक सुविधा है, वहीं दूसरी तरफ इसे सम्भालकर प्रयोग करने की जिम्मेदारी ग्राहकों पर है।
इन दिनों एटीएम कार्ड से जुड़ी कई प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिसमें जालसाज ग्राहकों की कम जानकारी का फायदा उठाकर उनके खातों में जमा रकम डकार रहे हैं। राजधानी में विभिन्न बैंकों के 120 से अधिक एटीएम मशीन है, जिनमें न्यूनतम सुरक्षा जैसे गुप्त कैमरा, गार्ड आदि की सुविधा होने के बावजूद लोग अपने खातों की सुरक्षा हेतु आश्वस्त नहीं हैं, क्योंकि एटीएम मशीन के साथ यह डेबिट कार्ड के तौर पर भी इस्तेमाल हो रहे हैं जिसमें बिना नकदी आहरण किए खरीददारी की जा सकती है। मशीन की गड़बड़ी या अपनी स्वयं की लापरवाही की वजह से भी उपयोगकर्ताओं को परेशान होना पड़ता है।
भारतीय स्टेट बैंक के एक अधिकारी के मुताबिक एटीएम का प्रयोग करते समय अगर कुछ सावधानियां बरती जाएं तो इसके गलत इस्तेमाल से बचा जा सकता है, क्योंकि रकम डूबने के बाद शिकायत करने पर भी बैंक किसी प्रकार की ठोस मदद करने की स्थिति में नहीं होते। एटीएम प्रयोग करते समय यह जांच लें कि कोई आपका पिन नम्बर न देख रहा हो, कार्ड विवरण जैसे कार्ड नम्बर और सीवीवी नम्बर किसी अन्य को न बताएं। कुछ मशीनों में कार्ड डालने की जगह उसको स्वाइप कराना होता है, ऐसी मशीनें अक्सर ट्रान्जैक्शन पूरा करने के बाद अगले लेन-देन के बारे में पूछती हैं जिसे 'नहीं' दबाकर पूरा करें। अगर आप अपने एटीएम कम-डेबिट कार्ड से खरीददारी कर रहे हैं तो यह ध्यान रखें कि आपके कार्ड को एक बार से अधिक स्वाइप न किया जाए। अगर ऐसा होता है तो इसकी जानकारी लेते हुए रसीद जरूर प्राप्त करें। कार्ड को अपनी नजर में ही रखें क्योंकि हो सकता है आपके द्वारा दी गई जानकारी का कोई दूसरा इस्तेमाल कर ले। कार्ड के पीछे सीवीवी नम्बर होता, इसको अपने पास सुरक्षित लिखकर इसे कार्ड से मिटा दें। तीन अंकों का सीवीवी बहुत अहम् होता है, इसकी मदद से आपकी जानकारी और कार्ड के बगैर भी कोई इंटरनेट से खरीददारी कर सकता है। शहर में अब तक घटी घटनाओं में से अधिकतर को इंटरनेट के माध्यम से ही अंजाम दिया गया है। जहां तक सम्भव हो साईबर कैफे का इस्तेमाल ऑनलाइन पेमेन्ट हेतु न करें, क्योंकि वहां से आपके निजी विवरण लीक होने का खतरा सबसे अधिक होता है। कार्ड खो जाने पर संबंधित बैंक शाखा या ग्राहक सेवा केन्द्र जाकर अपना कार्ड तुरन्त बंद करा दें, इसकी सूचना पुलिस को भी दी जा सकती है।

Wednesday, December 8, 2010

हवाई किराए में बढ़ोत्तरी, मनेगा नए साल का जश्न


नए वर्ष के आगमन में कुछ ही दिनों का समय शेष रह गया है, इसलिए 31 दिसम्बर की रात का जश्न मनाने के लिए अभी से लोग सैर-सपाटे की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। राजधानी से ज्यादातर लोग मुम्बई, केरल, गोवा व कर्नाटक जाने के लिए बुकिंग करवा चुके हैं। लोगों का उत्साह भांप हवाई किराया में तीस से चालीस फीसदी की वृध्दि हो गई है, साथ ही ज्यादातर ट्रेनों में सीटें भर गई हैं। ट्रैवल एजेंसियाँ ग्राहकों के हिसाब से कई टूरिज्म पैकेज लाकर उन्हें आकर्षित कर रही हैं।

राजधानी रायपुर के बाशिंदे नए साल का जश् मनाने के लिए घरेलू पर्यटक केंद्रों में जाकर नववर्ष का स्वागत करने की तैयारी कर चुके हैं। समता कॉलोनी के राजेश सिन्हा इस बार अपने परिवार के साथ एक हफ्ते के लिए केरल जाने की बात करते हुए कहते हैं कि हमने जश् को यादगार बनाने की पूरी तैयारी कर ली है, अब बस निकलने की देर है। विभिन्न शहरों के लिए हवाई किराए में भी वृध्दि हुई है। मुम्बई के लिए आम दिनों में हवाई किराया चार हजार रुपए तक रहता था, जो अब 5000 रु. से ऊपर निकल गया है। घड़ी चौक स्थित ट्रैवल एजेंसी संचालक ने बताया कि उनके यहां से लोगों ने अधिकतर मुम्बई और गोवा के लिए बुकिंग कराई है, जबकि कुछ ने केरल, मनाली और हैदराबाद की भी टिकटें खरीदी हैं।

Tuesday, December 7, 2010

धड़ल्ले से जारी है नकली सीडी का कारोबार




राजधानी में इन दिनों पायरेटेड सीडी का धंधा जोरों पर है। नई फिल्म रिलीज हुई नहीं कि उसकी सीडी बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक फिल्म निर्माता जितना फिल्म बनाकर कमाता है, उससे कहीं ज्यादा कमाई नकली डीवीडी-सीडी बनाने वाले कर रहे हैं। इससे न केवल फिल्म व्यवसाय से जुड़े लोगों का नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकार को भी करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है। लचर कानून व सख्त कार्रवाई के अभाव में इस धंधे से छोटे कारोबारी भी जुड़ चुके हैं, स्थिति यह है कि 150 से 200 रुपए तक मूल्य में मिलने वाली फिल्मों की डीवीडी कॉपी करके 20-25 रुपए में शहर के ठेलों में खुलेआम बिक रही है।
तेजी से पांव पसार रहा पायरेसी का व्यवसाय मनोरंजन उद्योग के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। छत्तीसगढ़ का फिल्मोद्योग भी पायरेसी के रोग से अछूता नहीं है। छत्तीसगढ़िया फिल्मोद्योग से जुड़े मोहन सुंदरानी कहते हैं कि पायरेसी का यह नेटवर्क राजधानी ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में फैला हुआ है। इससे निपटने के लिए छोटी-मोटी कार्रवाई से काम नहीं चलने वाला। वह मानते हैं कि इसके पीछे कोई बड़ा रैकेट काम कर रहा है और अगर पुलिस गंभीरता से पड़ताल करे तो एक सप्ताह के भीतर ही इसकी सभी परतें खुल सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि शहर में ओरिजनल सीडी बेचने वाली सिर्फ 4-5 दुकानें ही हैं। आमापारा स्थित एक सीडी विक्रेता ने बताया कि असली डीवीडी महंगी होने के कारण लोगों का रूझान सस्ती पायरेटेड कॉपी पर अधिक रहता है, क्योंकि यह 20 से 25 रुपए में उपलब्ध होने के साथ इसमें पांच से छ: फिल्में भी होती हैं।
ऐसा नहीं है कि पुलिस ने कभी छापेमारी नहीं की। शहर के कई ठिकानों में शिकायत के आधार पर कई बार दबिशें दी गई हैं, लेकिन सीमित कार्रवाई के चलते आरोपी अक्सर बच निकलते हैं और वापस अपने धंधे में लग जाते हैं। हर महीने करोड़ों के टर्न ओवर तक पहुंच चुके पायरेसी के धंधेबाजों को पकड़ने में आमतौर पर पुलिस गंभीर नहीं होती। कई बार म्युजिक कंपनियां जब शिकायत करती हैं तो छापा मार दिया जाता है। मौके पर मिले माल को जब्त किया जाता है, लेकिन कारोबार की जड़ में जाने और बड़ी मछलियों को पकड़ने की पुलिस ने कभी कोशिश नहीं की। पायरेसी नेटवर्क को तोड़ने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है, साथ ही सरकार को भी समस्या की सुध लेनी चाहिए। क्योंकि उसे भी करोड़ों के राजस्व का घाटा उठाना पड़ रहा है।
शहर में पायरेटेड सीडी के फुटकर विक्रेताओं की यूं तो हर जगह भरमार है, लेकिन घड़ी चौक, जयस्तम्भ चौक, जेल रोड, महाबो बाजार, पंडरी, तेलीबांधा, पचपेढ़ी नाका, आमापारा, सदर बाजार, के अलावा लगभग सभी चौराहों में ठेलों में सजाकर इनकी खुलेआम बिक्री की जा रही है। सरेआम जिस तरह कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन किया जा रहा है, उसमें प्रशासनिक चुप्पी हैरत करने वाली है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक वह सिर्फ शिकायत के आधार पर ही कार्रवाई कर सकते ह,ैं लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि इस संज्ञेय अपराध में किसकी शिकायत का इंतजार है। राजधानी होने के कारण यहां वीआईपी मूवमेंट भी अधिक रहता है, उसके बावजूद शासन-प्रशासन के लोगों की चुप्पी पायरेसी के धंधे को मौन सहमति दे रही है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे मामलों में पुलिस स्वयं कार्रवाई कर सकती है। कॉपी राइट एक्ट के तहत दर्ज किए गए मामले में तीन साल की सजा और बीस हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। यह संज्ञेय अपराध है इसलिए पुलिस को बिना मजिस्ट्रेट से आदेश लिए आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार है, लेकिन इस कानून में इतने अधिक पेंच हैं कि आमतौर पर आरोपी बच निकलता है।


कैसे चल रहा है धंधा
फिल्म कंपनियों ने सिनेमा हॉल में दर्शकों को खींचने के लिए फिल्म के साथ सीडी रिलीज करनी बंद कर दी है। फिल्म निर्माता अपने विदेशी अधिकारों को बेच देते हैं और वहां फिल्में पहले रिलीज हो जाती हैं। साथ ही सीडी भी रिलीज की जाती है। सीडी रिलीज होते ही यह आसानी से पाकिस्तान होते हुए भारत पहुंचती है। इस काम में अन्डरवर्ल्ड के लोग भी शामिल हैं। दूसरा लैब में फिल्मों के निगेटिव तैयार करते समय उसकी कॉपी कर लेते हैं, फिर इस मास्टर प्रिन्ट की मदद से करोड़ों सीडी तैयार कर ली जाती है। छत्तीसगढ़ में माल दिल्ली व मुंबई के बाजारों से आता है।

बड़ी कार्रवाई की जरूरत
रणनीति के तहत अभियान चलाकर पायरेसी के खिलाफ सख्त मुहिम छेड़ने पर ही इस पर रोक लग सकती है, क्योंकि मर्ज इतना बढ़ गया है कि छिटपुट कार्रवाईयों से कुछ नहीं होने वाला।

दक्षिण भारत के राज्यों में सख्ती
एक अनुमान के मुताबिक फिल्म जितनी कमाई करती है उसका दस गुना पायरेसी से जुड़े लोग कमा रहे हैं। जानकार मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में दक्षिण भारत की तर्ज पर सख्त कार्रवाई करते हुए आरोपियों पर गुंडा एक्ट लगाना चाहिए, जिससे आरोपी छह महीनों तक जेल में ही रहें। कॉपीराइट एक्ट को भी सख्त बनाए जाने की तुरंत आवश्यकता है, साथ ही सरकार की भी जिम्मेदारी है कि पायरेसी करने वालों से सख्ती से निपटे।

जनता भी आगे आएं
अगर आप सड़क किनारे या अवैध ढंग से बिकने वाली सीडी, डीवीडी की सूचना देना चाहते हैं तो इस नम्बर 18001031919 पर दे सकते हैं।