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Monday, December 13, 2010

ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण हेतु छत्तीसगढ़ में कानून नहीं


  • न्यायालय भवन तोड़ने का विरोध तेज़
  • राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनाने की मांग

राज्य की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए प्रदेश में कोई कानून न होने का खामियाजा ऐतिहासिक इमारतों को ज़मींदोज़ होकर भुगतान पड़ रहा है। ब्रिटिश शासनकाल के समय सन् 1880 में निर्मित पुराना न्यायालय भवन की मूल संरचना के साथ छेड़छाड़ कर नए निर्माण के प्रयास होने लगे हैं, जिसका भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) व इतिहासकारों ने विरोध किया है। इस संबंध में राज्य सरकार से मांग की गई है कि वह पुरातात्विक महत्व की इमारतों के संरक्षण के लिए उक्त भवन को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर विधि संग्रहालय बनवाए।
शहर के इतिहासविदों ने कई बार इन्टैक के माध्यम से पुरानी इमारतों के संरक्षण के लिए राज्य में कानून बनाने की मांग मुख्यमंत्री व लोक निर्माण मंत्री से की है। इतिहासकार एलएस निगम न्यायालय भवन को तोड़े जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इतिहास के उदाहरणों को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे शहर की सांस्कृतिक विरासत का पता चलता है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक महत्व के निर्माण की मूल संरचना में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। प्रदेश में जब तक इस संबंध में कानून का स्पष्ट प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक इसे केन्द्र सरकार के अधीन पुरातत्व विभाग को सौंपने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। नागरिक संघर्ष समिति के अध्यक्ष विश्वजीत मित्रा का कहना है कि वर्तमान में न्यायालय परिसर में पार्किंग की व्यवस्था व्यापक रूप से नहीं है एवं इसके बाहर ट्रैफिक का दबाव भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, जिससे आने वाले वर्षों में गोल बाजार, मालवीय रोड जैसे भीड़भाड़ की स्थिति निर्मित होगी, इसलिए उक्त परिसर में नया निर्माण करना सरकारी धन की बर्बादी तो है ही, प्राचीन धरोहर के साथ भी छेड़छाड़ है। अत: नए स्थल का चयन कर सम्पूर्ण न्यायालय भवन को अन्यत्र स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
श्री मित्रा ने यह भी बताया कि जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के अंतर्गत भी पुरानी इमारतों की देखरेख, संरक्षण, रंग-रोगन, मरम्मत आदि की व्यवस्था है, लेकिन राज्य में स्पष्ट कानून न होने के कारण एक के बाद एक ऐतिहासिक महत्व की इमारतें नष्ट होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले ही तेलीबांधा स्थित मौली माता मंदिर को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर ज़मींदोज़ कर दिया गया था।

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